Thursday, 27 October 2016

Chinmay Prasad

Chinmay Prasad


​​​​✔  *चिन्मय प्रसाद*    ✔ 

▶ प्रसाद में चिन्मयता तभी आती है, जब
उसे प्रभु ने स्वीकार कर पा लिया हो !

▶ और स्वीकार तभी होता है, जब
पूर्ण शुद्धता एवं मर्यादा का पालन करते हुए
भाव, श्रद्धा व शास्त्रानुसार बनाया हो

▶ अन्यथा वह भी राजसिक, तामसिक, गुणों
से युक्त एक पदार्थ ही है

▶ प्रसाद चिन्मय है या नहीं, यह पता न होने
पर प्रसाद का एक कण लेकर प्रणाम करना चाहिए

▶ चिन्मय है तो ठीक, नहीं तो दुष्प्रभाव
बहुत कम होगा

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Wednesday, 26 October 2016

YAKSH PRASHN


YAKSH PRASHN

​​​✔  *यक्ष प्रश्न *    ✔


▶ यक्ष – वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
युधिष्ठिर – जैसी वासनाएं वैसा जन्म।
यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म।
यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।

Tuesday, 25 October 2016

धाम कृपा कैसे हो

धाम कृपा कैसे हो


​​✔  *धाम कृपा कैसे हो*    ✔

▶ ब्रजवास करने वाले वैष्णवो के लिए तीन महत्वपूर्ण बातें बताई गई ।

▶ प्रिया लाल जी की सेवा, कृपा से ही प्राप्त होती है और कृपा नियम पूर्वक धाम वास करने से होती है ।

▶ साधन का फल, सभी साधनों का फल धामवास, और धाम वास का फल कृपा । कृपा का फल प्रिया लाल जी के चरणों की सेवा ।

▶ लेकिन हम जो धामवास करते हैं, वह पांच नंबर का धाम वास है । संपूर्ण धाम वास के लिए 3 नियमों का पालन करना आवश्यक है ।

▶ पहला है सुअल्प भोजन ।

▶ शरीर रक्षा होती रहे बस, इसके लिए रुखा सूखा किसी भी प्रकार पेट भर लेना वो भी अल्प अर्थात मात्र म कम ।

▶ भोजन का, जिह्वा का रस यदि छूट जाएगा तो शब्द, रस रूप, गंध, स्पर्श यह पांचों विषय अपने आप छूट जाएंगे , ऐसा शास्त्रीय वचन है ।

▶ धाम में रहते हुए, साथ ही मैं तो कहूंगा धामवास की इच्छा करते हुए भी, जहां भी हम हैं, हम अपने भोजन में शुद्धि लाएं ।

▶ रजोगुणी तमोगुणी भोजन से हमारा सत्यानाश हो रहा है और होना ही है ।

▶ दूसरा है स्वतंत्रता

▶ धाम वास तो  कर रहे हैं लेकिन अपनी जान को 50 झंझट हमने लगाए हुए हैं ।

▶ भजन में बैठे हैं चित लगने को हुआ तभी हमें ध्यान आता है कि हमें 2:00 बजे वहां जाना है 4:00 बजे वहां जाना है ।

▶ अतः साधक बाह्य विषयों से बिल्कुल स्वतंत्र हो उसके दिमाग में भजन भजन भजन । भजन की प्राथमिकता हो । भजन मैं उसका बंधन हो ।अन्य बाह्य लौकिक विषयों से वह स्वतंत्र हो तभी वह धाम की कृपा प्राप्त कर सकता है ।

▶ तीसरा है आनुगत्य

▶ आनुगत्य का अर्थ सदगुरुदेव दीक्षा गुरु देव अथवा शिक्षा गुरुदेव अथवा किसी श्रेष्ठ वैष्णव की आनुगत्य में भजन किया जाए ।

▶ मनमाने ढंग से ठाकुर के श्री विग्रह को इधर उधर लेकर डोलना । वेश बनाना । मनमानी कल्पनाएं करना । मनमानी बातें करना । मेरे ठाकुर एवम मेरे बीच में अब कोई नहीं है ।

▶ इत्यादि इत्यादि से धाम की कृपा प्राप्त नहीं होगी । ध्यान रहे धामवास सभी साधनों का फल है और यह साध्य भी है ।

▶ अर्थात धाम वास मिल गया और उपरोक्त नियमानुसार आचरण हो गया तो समझिए हमें जीवन में जो पाना है वह मिल गया ।

▶ अतः कठिन अवश्य है लेकिन असंभव नहीं । हम यदि धाम में नहीं भी हैं तो भी इन नियमों का यदि पालन करते रहें तो शीघ्र ही हम पर धाम की कृपा होकर धाम में वास मिल जाएगा और धाम में वास मिल गया तो फिर दिल्ली दूर नहीं है ।

▶ आदरणीय गो श्री अच्युतलाल भट्ट जी कथा सार


🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

Tuesday, 18 October 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु

📖 ग्रन्थ   परिचय 5⃣3⃣  📖

💢 ग्रन्थ  नाम : श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु
💢 लेखक  : श्रीमद रूपगोस्वमिपाद 
💢 भाषा : मूल संस्कृत- हिंदी अनुवाद  टीका  |
     ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 14 x 22 सेमी
💢 पृष्ठ    : 882 हार्ड   बाउंड
💢 मूल्य   : 500  रूपये

💢 विषय वस्तु :
       भक्ति की रसनिष्पति, सामग्री एवं
       भक्ति के निखिलरसो का सांग-सोदाहरण
      परिचायक अद्वितीय भक्तिकोष

💢 कोड : M053-Ed4

💢 प्राप्ति   स्थान:

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔   

श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु
श्रीभक्तिरसामृतसिन्धु


Monday, 17 October 2016

ग्रन्थ परिचय : श्रीमदभागवतगीता

​​​​​​​​📖 ग्रन्थ   परिचय 5⃣2⃣  📖

💢 ग्रन्थ  नाम : श्रीमदभागवतगीता
💢 लेखक  : श्रीमत्कृष्णद्वैपायन-वेद्ब्यास
💢 भाषा : मूल संस्कृत- टीका एवं हिंदी अनुवाद |
     ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 15 x 23  सेमी
💢 पृष्ठ    : 344 हार्ड   बाउंड
💢 मूल्य   : 200  रूपये

💢 विषय वस्तु :
   श्रीविश्वनाथ चक्रवर्तिकृत संस्कृत टीका
   व् श्रीबलदेवविद्याभूषण की टीका के
  तात्पर्यमय हिंदी अनुवाद टीका सहित 

💢 कोड : M052-Ed2

💢 प्राप्ति   स्थान:

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔




Thursday, 13 October 2016

ग्रन्थ परिच : श्रीभक्ति सन्दर्भ


​​​​​​​📖 ग्रन्थ  परिचय 5⃣0⃣  📖

💢 ग्रन्थ नाम : श्रीभक्ति   सन्दर्भ
💢 लेखक  : श्रीजीव गोस्वमिपाद
💢 भाषा : संस्कृत-हिंदी अनुवाद-टीका | सचित्र
     ब्रजविभूति श्रीश्यामदास
💢 साइज़ : 15 x 23  सेमी
💢 पृष्ठ   : 616 हार्ड   बाउंड
💢 मूल्य  : 450  रूपये

💢 विषय वस्तु :
   सम्बन्ध तत्व परब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की
   प्राप्ति के परमोपाय भक्ति का
   निरूपण (पांचवा संदर्भ )

💢 कोड : M050-Ed1

💢 प्राप्ति  स्थान:

1⃣ खण्डेलवाल बुक स्टोर वृन्दाबन
2⃣ हरिनाम प्रेस वृन्दाबन
3⃣ रामा स्टोर्स, लोई बाजार पोस्ट ऑफिस

📬 डाक द्वारा । 09068021415
पोस्टेज फ्री

📗🔸📘🔹📙🔶📔


Wednesday, 12 October 2016

कार्तिक व्रत


 ❗कार्तिक व्रत❗

🌿     कार्तिक मास को दामोदर मास भी कहते हैं l इस मास में विशेष व्रत नियम ग्रहण करना और उसे निभाना भी भक्ति का एक अंग हैं l यह दामोदर मास आदर पूर्वक थोड़े से भजन नियम को बहुत मानकर भगवान की बड़ी भारी अमूल्य भक्ति सम्पति को प्रदान कर देता है l

🌿      एक माह के लिये कुछ नियम लेने चाहिए जिनसे भजन निष्ठा में वृद्धि हो l और हम एक और सोपान चढ़ने में सफल हो सके l

1⃣ यथा सम्भव वृन्दावन या राधा कुण्ड में वास l

2⃣ नाम की संख्या में वृद्धि और प्रतिदिन कुण्ड स्नान यमुना स्नान या परिक्रमा का नियम ले l

3⃣ बाहर रहने वाले मानसिक रूप से प्रतिदिन वृन्दावन आएं l

4⃣ आँगन में तुलसी जी विराजमान कर 108 परिक्रमा करें l

5⃣ किसी सद्ग्रन्थ का प्रतिदिन पाठ l

6⃣ यथा सम्भव हल्का सात्विक आहार ले l

7⃣ एकादशी व्रतों का निष्ठा सहित पालन करे l केवल भूखा रहना या कुछ न खाने का नाम एकादशी नहीं है l

    🍓सात्विकता रखकर अधिकाधिक नाम भजन करना एकादशी व्रत है l🍓

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया 
LBW - Lives Born Works at vrindabn



Saturday, 8 October 2016

कितने करीब हैं आप ??

​✔  *कितने करीब हैं आप ??*    ✔

▶ माना कि आप या में धन के बहुत क़रीब हैं
यश के बहुत क़रीब हैं
मान - सम्मान के बहुत क़रीब हैं
पति या पत्नी के बहुत क़रीब है
माता -पिता या बच्चों के बहुत क़रीब है
देश - विदेशों के बहुत क़रीब हैं

Friday, 7 October 2016

साधू द्वारा कंजूसी का त्याग

 ​✔  *साधू द्वारा कंजूसी का त्याग*    ✔

▶ 64 अंग भक्ति में वैष्णवजन के लिए एक निर्देश है  *व्यवहार में कारपण्य त्याग*  कारपण्य माने कंजूसी ।

▶ एक साधू या वैष्णव्ं कैसे कंजूसी करता है इसको उदाहरण से समझते हैं । मेरा बहुत वैष्णवों से संतो से संपर्क रहा है

▶ हमारी प्रेस में संत आएंगे । एक ग्रंथ छपाने को कहेंगे वह ग्रंथ फ्री में वितरण होना है । हज़ारों ग्रंथ फ्री में वितरण करेंगे । यह उनकी उदारता का प्रतीक है ।

▶ लेकिन हम जब उनकोे खर्चा बताएंगे तो जो सहज संत होते हैं ,  वह तो जो हमने मांगा हमें प्रसन्नता से दे देंगे ।

▶ जो कंजूस संत होते हैं हमने यदि एक लाख रुपया मांगा तो वह 70 हजार से शुरू होंगे । फिर कहेंगे नहीं लाला कम करो । फिर दूसरी प्रेस में जाएंगे । फिर तीसरी प्रेस में जाएंगे ।

Thursday, 6 October 2016

सारे कलेश की जड़ भोजन

✔  *सारे कलेश की जड़ भोजन*    ✔

▶ हम भोजन को बहुत हल्के में लेते हैं लेकिन भोजन का हमारे जीवन पर कितना, अरे कितना क्या, पूरा का पूरा प्रभाव पड़ता है ।

▶ हमारा स्वभाव
▶ हमारा चिंतन
▶ हमारा आचरण
▶ हमारा क्रोध
▶ हमारा लोभ
▶ हमारा काम
▶ हमारी ईर्ष्या
▶ हमारा स्वास्थ्य
▶ हमारे मन की चंचलता

Tuesday, 4 October 2016

मन नहीं लगता

​ ​​​​​✔  *मन नहीं लगता*    ✔

▶ यह एक ऐसी समस्या है
जो प्राय सभी को घेरे रहती है ।

▶ हमारी दस इंद्रियां हैं । उनका स्वामी है मन । मन का कंट्रोल् बुद्धि से होता है । बुद्धि से यदि हम विचार करते हैै तो यह कुछ कारण है जिनके कारण मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ टीवी देखने से अटपटे दृश्य और उस में दिखाए गए उत्पात से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ अखबार पढ़ने से, अखबार के दृश्य एवं ऊल जुलूल, मरने मारने, हत्या, हिंसा की खबरों से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ whatsapp, टेलीग्राम या अन्य मीडिया पर अनावश्यक चैटिंग करने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ अनेकानेक फालतू के विषय जैसे मोदी पर, ओबामा पर, क्रिकेट पर, कांग्रेस पर,  बीजेपी पर अनावश्यक चर्चा करने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ चटपटा मिर्च मसालेदार भोजन या अचार आदि तीखे पदार्थ खाने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ पति या पत्नी के साथ या किसी मित्र के साथ यहां तक कि वैष्णव के साथ एक ही थाली में जूठा खाने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ होटल का भोजन, ढाबे का पराठा, पार्टियां, किट्टी पार्टी में, बुफे सिस्टम में खड़े होकर झूठे हाथों से ले देकर खाने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ फास्ट फूड, प्याज लहसुन,  बाजार की तरह तरह की चॉकलेट, तरह तरह के पेय जिनमें मांस या मांस का रस मिला होता है वह खाने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ शरीर की आवश्यकता से अधिक स्वाद स्वाद में चकाचक खाने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ चंचल लोगों के साथ बैठने से एवं उनके साथ भोजन करने से मन में चंचलता पैदा होती है ।

▶ इस प्रकार हम देखें तो यह सारी की सारी हमारी दिनचर्या है । अतः यह 1 दिन में नहीं बदली जाएगी

▶ इनमें से धीरे धीरे एक एक चीज को थोड़ा कम करते जाएं । आज के बाद किसी का झूठा एक थाली में कभी न खाएं यह सहज में हो सकता है ।

▶ फास्ट फूड की बजाए फल और घर में बने पदार्थ खाएं । अखबार टीवी को भी धीरे धीरे छोड़ा जा सकता है ।

▶ धीरे धीरे यदि हमारी चेष्टा रहेगी तो यह सब छूट जाएगी और इनके छूटने से मन की चंचलता सहज ही कम हो जाएगी ।

▶ फिर मन की चंचलता को भगवद भजन की तरफ डाइवर्ट कर देने से भी अपना काम हो जाएगा ।

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
मन नहीं लगता


Monday, 3 October 2016

शरीर ढकना है । सजाना नही

​​​​​​​✔  *शरीर ढकना है । सजाना नही*    ✔

▶ जय श्री राधे । दासाभास सहित हम सबको यह शरीर और संसार भजन के लिए मिला है ।

▶ इसी शरीर में रहकर इसी संसार में रहकर हमें भगवद् भजन भगवद्चरण सेवा प्राप्त करनी है

 ▶ "शरीर मादयम खलु धर्म साधनम"

▶ संसार को भी दुखालय कहां गया, लेकिन इसका सबसे बड़ा सुख यह है कि इसी संसार में रहकर भगवतचरण प्राप्ति होती है ।

▶ यह दुखालय कब बनता है ,  यह शरीर भी बाधा कब बनता है,  तब बनता है जब दासाभास सहित हम सब इस संसार और शरीर को प्रयोजन से अधिक अतिवादिता में आकर विषय भोग में लगा देते हैं ।

▶ उदाहरण लीजिए । जैसे शरीर को हमें ढकना है। ढकने के लिए कपड़े हैं । कोई भी ऐसा वस्त्र जिससे शरीर सहजता से ढक जाए ।
यह है प्रयोजन ।

▶ अब इसके बाद शुरू होती है विषय की बात । पैंट के साथ कुर्ता नहीं पहनना, धोती के साथ टी शर्ट नहीं पहनी, पीले कुर्ते के साथ पीली लेगिंग पहनी है आदि ।

▶ यह थोड़ा लंबा है , यह थोड़ा छोटा है , यह प्रेस किया हुआ नहीं है । अरे दासाभास ! आजकल तो इसका कोई फैशन ही नहीं है ।

▶ यह सारी चीजें प्रयोजन से ऊपर गई । और जब प्रयोजन से ऊपर शरीर+संसार जाएगा तो हमारी वृत्तियां, हमारा केंद्र, हमारा चिंतन उसी में रहेगा ।

▶ इस संसार में हमें रहना है । दो समय का भोजन , थोड़े से वस्त्र, थोड़ा सा एकांत स्थान ऊंचा हो नीचा हो । थोड़ी अनुकूलता ।

▶ बस इतना ही संसार का प्रयोजन है । ऐसे ही इतना ही शरीर का प्रयोजन है ।  हम आप दासाभास सभी विषय में फसे हुए हैं । और प्रयोजन से 20।20 गुना हम लोग शरीर और संसार में उलझे हुए हैं ।

▶ एक दिन में नहीं होगा दासाभास सहित हम सब को चेष्ठा रखनी है । दृष्टी रखनी है कि हम सब संसार शरीर को भजन में लगाएं । क्योंकि यह संसार और शरीर विषय भोग के लिए नहीं मिला है  । यह भजन के लिए मिला है ।

▶ भजन के साथ-साथ संसार और शरीर से संतुलन बनाए और प्रयास में यह रहे कि भजन बढ़ता जाए और संसार और शरीर की यह जो अतिवादिता है, विषयवादिता है । यह छूटती जाए ।

▶ इसमें एक जीवन भी लग सकता है । दो जन्म ही लग सकते हैं और हमारी चेष्टा बलवती हो तो दो । चार । दस । बीस साल में भी यह काम हो सकता है ।

▶ अतः मन में, चिंतन में इसे रखना होगा । दासाभास भी रखेगा । आप भी रखिए तो दोनों मिलकर एक ना एक दिन हम सब होंगे कामयाब ।

​🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn​
 
 
शरीर ढकना है । सजाना नही

Sunday, 2 October 2016

क्या कहेंगे इसको

​​​​​✔  *क्या कहेंगे इसको*    ✔

▶ मेरे एक निकट के रिश्तेदार हैं, दीक्षित भी हैं, भजन भी करते हैं, विद्वान भी हैं । पूज्य पिताजी के साथ उन्होंने ग्रंथ लेखन में सहायता भी की है । 2 । 4 ग्रंथों का अनुवाद संपादन भी किया है ।

▶ ग्रहस्थ हैं । अच्छी किसी सरकारी सेवा में थे । वहां से अवकाश मुक्त हुए । 40,000 रु लगभग पेंशन आती है । दो पुत्र हैं , दोनों पर्याप्त पैकेज में कार्यरत हैं ।

▶ जब रिटायर हुए तब मैंने कहा कि अब तो आपके पास समय है, आप अपना समय ग्रन्थसेवा में दीजिए

▶ उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखाई । उसके बाद चर्चा हुई । मैंने कहा चलिए 100000 नाम करिए , अध्ययन करिए  , जप करिए । सेवा पूजा करिए । सत्संग करिए । भजन करिए ।

▶ अब आपकी आर्थिक परिस्थिति ठीक है । पति-पत्नी के लिए 40,000 रुपए महीना पर्याप्त है । मकान अपना है ।

▶ वह एक डेढ़ साल तो घर पर रहे भजन वजन पर केंद्र किया नहीं । सामान्य जो एक आधा घंटा प्रतिदिन हम आप लोग करते हैं । वैसे किया और दिन भर अपितू घर  गृहस्थी की बातों में महिलाओं की दखलंदाजी में रहते थे

Saturday, 1 October 2016

श्री वृंदावन दर्शन कैसे करें

​​✔  *श्री वृंदावन दर्शन कैसे करें*    ✔

▶ प्राय जितने भी वैष्णव जन हैं, वह वर्ष में एक, दो, चार, दस बार वृंदावन आते ही हैं ।

▶ वृंदावन आने की भी शास्त्रीय रीति है कि बहुत अधिक भीड़ अपने साथ नहीं लानी चाहिए, नहीं तो उस भीड़ में शामिल लोगों की देखरेख में ही वृत्ति लगी रहती है, एकाग्रता नहीं बन पाती ।

▶ अतः कोशिश करें कम लोग या छोटे ग्रुप में ही वृंदावन आएं ।

▶ हर बार जब आप आएं तो एक या दो नए मंदिर,  नए संत, नये वैष्णव से अवश्य मिले ।

▶ आना,  बिहारी जी के,  श्री राधा रमण जी, इस्कॉन के दर्शन करना लस्सी पीना,  टिक्की खाना,  हर बार यही करते-करते वैसा ही है जैसे अनेक साल से कक्षा तीन में ही पड़े रहना ।