Friday, 22 April 2016

Muk Drishta

मूक दृष्टा 

ये पहली सीढ़ी है कि कोशिश करके इस संसार में होने वाली क्रियाओं को
जेसे कोई अकड़ू ह । कोई विनम्र ह । कोई धनवान ह । कोई गरीब है । कोई किसी से बोल नही रहा है । कोई अधिक बोलता हा । कोई नारा, होता ही नही । कोई क्षण क्षण में नाराज़ होता है

कोई कैसा कोई कैसा । बस देखो । कुछ समय में ये सब गुण दोष दीखना भी बन्द हो जाएंगे ।

बस किसी को बदलने की मत सोचो । और उसके बारे में भी मत सोचो । सोचो बस यही कि वाह प्रभु तेरे रंग निराले । अपनी सृष्टि में कैसे कैसे जिव बनाये तूने ।

ठीक वेसे जेसे चूहे । बिल्ली । शेर । हाथी को देख कर कभी नही सोचते कि ये हाथी इतना मोटा क्यों है ।

ठीक इसी प्रकार ये मत सोचो की ये ऐसा क्यों है । वो वेसा क्यों है । अपितु उनमे जो कमी लगे । उसको अपने म न आने दो

🌹समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम🙏
🐚 ॥ जय श्री राधे 🐚

🐚 ॥ जय निताई   🐚

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