Wednesday, 27 April 2016

✅ कितने पेपर दिए हैं हमने ✅



▶ एक है विद्या और दूसरी है पराविद्या या परमविद्या| हमारे जितने भी लोकिक कलाएं या शिक्षा है - ये सब विद्या के अंतर्गत आती है|

▶ जैसे हाईस्कूल | इन्टर ग्रेजुएट| पोस्ट ग्रेजुएट| लेखन| प्रवचन| एम.बी.ए., एम.बी.बी.एस  आदि| ये सब विद्याएं हैं|

▶ अब जब ये सब विद्याएं हैं तो पराविद्या या परमविद्या इनसे तो श्रेष्ठ होगी ही| जैसे वैष्णव से श्रेष्ठ होता है परम वैष्णव| ये पराविद्या क्या है? ये है भक्ति| विद्या यदि कोई सामान्य स्त्री है तो पराविद्या 'वधु' है| ऐसी स्त्री जो दुल्हन बनी हुई है| बेहद सुन्दर आभूषण, हर्ष का संचार और स्त्री जीवन की सफलता की एक ऊँची सीढ़ी है 'वधु'| वही 'वधु' है - श्रीकृष्ण भक्ति|

▶ अब जब हम डॉक्टर या पि.एच्.डी. होने की बात जोड़ भी दें तो कम से कम ग्रेजुएट होने के लिए भी जीवन के कम से कम 22-24 वर्ष देने पड़ते हैं| तब हमारे हाथ में एक चिड़िया के बच्चे के सामान ग्रेजुएट डिग्री हाथ लगती है|

▶ और ग्रेजुएट के प्रति लोगों का भाव होता है की चलो 'पढ़ा लिखा तो क्या? कम से कम अनपढ़ नहीं है| 22-24 साल जीवन के देने के बाद क्या हाथ लगा? मोहर क्या लगी की ये मान्यवर 'अनपढ़' नहीं है|

▶ और अधिक योग्य होने के लिए जीवन के और 6-8 साल कड़ी म्हणत करके हम किसी लायक बनते हैं और थोड़ी ठीक ठाक स्थिति या अपने अस्तित्व को खतरे से बाहर करते करते  ४० वर्ष के हो जाते हैं| और यह भी सब नहीं| कुछ प्रतिशत| तो वही मई ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ की एक सामान्य सी विद्या के लिए 40  वर्ष जीवन के खर्च कर देने वाले हम क्या 'पराविद्या' 'परमविद्या' श्री कृष्णा भक्ति के लिए कितना परिश्रम या इनपुट का योगदान देते हैं?

▶ मेरे विचार से बिलकुल नहीं| हमने कभी भी भक्ति को एक कोर्स की तरह गंभीरता से नहीं लिया और बातें....! किसी से भी भक्ति उपदेश की बातें करिए, ऐसे उपदेश देगा जैसे पी.एच्.डी. कर रखी है|

▶ भक्ति का भी एक कोर्स है| सत्संग इसकी क्लास है| श्रवण-गुरु, शिक्षागुरु ही इसके टीचर है| नियमित श्रवण| नियमित ग्रन्थ अध्ययन| नियमित नाम-जप| संकीर्तन| दर्शन| सेवा-पूजा इसका होमवर्क है|

▶ यदि हम गंभीरता से पराविद्या के बारे में दक्ष होना चाहते हैं तो हमे अपने जीवन का अनेक समय| अनेक वर्ष| यहाँ तक की एक से अधिक जन्म इसको जान ने समझने के लिए देने होंगे| तब जाकर हमे इसका परिचय मिल पायेगा| अन्यथा तो अन्दर झांकें तो हाल सामने है|

▶ ऐसा नहीं है ऐसा कोई नहीं कराता है| किया है हमारे गौस्वामिपाद ने- श्रीरूप, सनातन, जीव, गोपल्भात्त आदि ने किया और पाया| आज भी फुल टाइमर संत हैं| जिन्होंने बी.ए. भले ही न किया हो, लेकिन 'पराविद्या' के अध्ययन में वे अपना जीवन दे रहे हैं|
✅ कितने पेपर दिए हैं हमने ✅
▶ जीवन दे रहे हैं और उन्हें प्राप्त भी होगा| हो रहा है| उनसे कभी चर्चा हो तो कहते है - 'कहों! बहुत कठिन है| गोलोक तो क्या, ब्रजरज भी मिल जाए तो अगले जन्म में कुछ बात बने और हम जीवन का एक भी वर्ष व्यवस्थित रूप में पराविद्या को न देकर-गोलोक और श्रीकिशोरी जी की गोद की आशा रखे बैठे हैं|  

▶ महाराज! बहुत कठिन है डगर पनघट की| हर महीने टेस्ट, फिर अर्धवार्षिक परीक्षा! फिर वार्षिक| फिर बोर्ड के पेपर| फिर प्रैक्टिकल| फिर जाने क्या क्या पापड़ बेलते हैं हम एक सामान्य सी डिग्री के लिए| इस पराविद्या भक्ति के लिए क्या हमने ऐसा कुछ किया? यकीन मानिए ये जो भी कुछ किया या कर रहे हैं- वह न के बराबर है| जोर लगाना होगा| अभी भी समय है| सोचें| ज़रा सोचें हम??

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/03/515 , मार्च, 2015 ) 


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