▶ एक मेरे मित्र हैं।दिल्ली में रहते हैं।मेरे से बोले -मैं वृन्दावन आना चाहता हूँ।
▶ वृंदावन की बहुत चर्चा सुनी हैं।मैनें कहा-ठीक है-कभी किसी अच्छे अवसर पर आप को बुलाउंगा।बोले -ठीक है,मैं अनिभज्ञ हूँ।मुझे सब साफ-साफ पूरी तरह बता देना स्पष्ट स्पष्ट।
कुछ दिन बाद मैनें फोन किया और कहा31अक्टूबर को मेरे पिता जी का उत्सव है।
▶ आप इस अवसर पर वृन्दावन आ जाओ।यह एक अच्छा अवसर है।अनेक सन्तों बके दर्शन हो जायेंगे।कीर्तन आदि भी होगा।तुम अवश्य आ जाना।बोले ठीक है।कितने बजे पहुँचना है।क्या रास्ता है ये सब बताओ।मैनें पूछा कि तुम कैसे आओगे ट्रेन,बस या कर से।बोले कार से मैनें बताया
▶ मैनें बतया 6बजे उठ जाना स्नान आदि करके तैयार हो जाना।
▶ 7बजे कार से निकलना और फरीदाबाद-कोसी से आगरा हाइवे पर मथुरा से पूर्व छटीकरा पर लैफ्ट हो जाना।
▶ वहां भक्तिवेदान्त द्वार पर आकर मुझे कॉल करना।आगे में मैनेज कर दूँगा।
▶ फिर तुम उत्सव स्थल पर आना वैष्णव दर्शन करना।संकीर्तन में शामिल होना।वैष्णव सेवा करना प्रसाद पाना।प्रणाम करना आदि आदि।
▶ बोले ठीक है।मेरा तो जीवन ही आनन्द से भर जायेगा।अब मेरे पास दिन में 2-3 फोन रोज आने लगे ।और उन्होंने क्या क्या पूछा यह देखिये-
▶ वो आपने कहा कि 6बजे प्रातः उठना।पांच बजे उठ जाऊँ तो
▶ तैयार होने का क्या मतलब है।धोती बांध क्र आऊँ?पैण्ट नहीं चलेगी।पैजामा कुर्त्ता कैसा रहेगा?
▶ अच्छा कुर्त्ता पाजामा सफेद हो या रंगीन कढ़ाईदार भी चलेगा।
▶ जो पहन कर आऊं वही पर्याप्त है या एक जोड़ा साथ में भी लेकर आऊं ऐसे अनेक प्रश्न।
▶ वो प्रभु जी आपने कार से आने को कहा न। तो कार छोटी लाऊँ या बड़ी?
▶ अच्छा कार सिल्वर कलर वाली या रेड वाली लाऊँ तो कोई हर्ज तो नहीं।
▶ वो प्रभु जी मैं सोचता था ड्राईवर ले आऊँ?
▶ अच्छा!अकेला आऊँ या पत्नी को ले आऊँ?
▶ कुछ सुबह नाश्ता वगैराह घर से लेकर चलें या सुच्चे मुंह आना है?
▶ रास्ते में किसी ढाबे पर कुछ चाय या पराठा खा सकते हैं ? भूख लगने पर।
▶ कोसी से कितने किलोमीटर पर छटीकरा आता है?
▶ प्रभु जी आप को कॉल तो कर लूँगा।आपने कॉल अटेन्ड नहीं की तो। आपका दूसरा कोई नं. हो तो दें।उस स्थान का पता बता दें। आदि आदि।
▶ ऐसे ढेरों प्रश्न वह मुझसे पूछते रहे और मैं यथा संभव उनका समाधान करता रहा। आखिर वो दिन आ गया 31 अक्टूबर का ।उनका कॉल आया ।
▶ छटीकरा से मैंने पहले से एक सेवक को छटीकरा पर खड़ा किया था ।वह उनको उत्सव स्थल पर ले आया। मुझसे मिले मैं भी प्रसन्न हुआ। उत्सव प्रारम्भ होने को था मैं थोड़ा व्यस्त था।
थोड़ी देर बाद देखा तो मुझे दिखाई नहीं दिये। मैंने समझा।कहीं अंदर बाहर अन्य वैष्णव में होंगे चलो आ गये तो पूरा आनंद लेंगे ही ।
▶ वैष्णव आयेंगे तो उनकी कृपा लेंगे । संकीर्तन का आनंद लेंगे। प्रसाद पाएंगे फिर अन्त में उन्हे कुछ शास्त्रचर्चा सुनायेंगे।
▶ मैं कार्यक्रम में व्यस्त रहा आया। कभी ध्यान जाता तो-यही मन में था कि यही नहीं आगे पीछे होंगे ।
▶ लेकिन जब उत्सव समाप्त हो चुका था तो हम थोड़ा सस्ता रहे थे जैसे ही मेरे दिमाग में आया कि वह दिल्ली वाले मान्यवर कहां है तो देखा कि पति पत्नी दोनों सामने से उत्सव उत्सव स्थल पर प्रवेश कर रहै हैं।
▶ मैं चौंका। मैंने कहा-आप! कहां थे ?
▶ बोले-बस!ऐसे ही यहां आए तो मैंने सोचा यहां का आनंद तो अब लेना ही है । मैं सामने जरा इस्कॉन में चला गया था। वहां मंदिर के गेट पर ही था- दर्शन भी नहीं किए थे कि वहाँ हमारा एक सप्लायर मिल गया।
▶ प्रभुजी!दिल्ली में एक दूसरे से मिलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। फिर हम थोड़ा एक ही स्थान पर बैठकर डिस्कस करने लग गये।हमने लस्सी पी बडी टेस्टी होती है जी,यहां की लस्सी । बस फिर क्या बातों में हमें पता ही नहीं चला कब 3 घंटो का समय निकल गया चलो कोई नहीं । अब मैं आ गया हूँ।
▶ मैं सन्न! मैंने कहा इसका मतलब तुम उत्सव में थे ही नहीं । अब तो उत्सव समाप्त विश्राम हो गया। 200-300 व्यक्ति यहां थे वैष्णव थे। संकीर्तन था । जिसके लिए मैंने तुम्हें बुलाया। और तुमने खूब तैयारी की लाल कार और सफेद कार-पचासों प्रश्न भी किये, लेकिन जो मुख्य अवसर था-
▶ उसके बारे में ना तो कुछ पूछा, ना ध्यान दिया, ना वह उत्सव अटेण्ड किया- ये क्या किया तुमने?
बोले-नहीं प्रभु जी! मैंने आपकी एक-एक बात मानी । मैं ठीक टाइम से उठा ।सफेद कार से आया ।व्हाइट कुर्ता पजामा पहन कर आया। पत्नी ने भी लाइट कलर की साड़ी पहनी।
▶ ढाबे पर चाय भी नहीं पी सुच्चे मुंह घर से चले । जो-जो आपने कहा मैंने देखो सब माना अब मुझे क्या पता कि यहां हो सप्लायर मिल जायेगा।
▶ मैंने माथा ठोका। ये बात मेरी किसी एक मित्र की नहीं है। ये हमारी आपकी सबकी बात है। एक होता है टारगेट !
▶ एक होता है उपाय । टारगैट को प्राप्त करने के उपाय होते हैं । हम लोग उन पर केंद्रित होते हैं कि 'टारगेट'ही रह जाता है।
▶ अरे भाई !तुम उत्सव के लिए आए थे। उत्सव तो अटेण्ड किया नहीं । और कुर्ते व कार पर विवेचन करते रह गये। यह उधारण एकदम सटीक फिट बैठता है -
▶ एकादशी व्रत पर एकादशी व्रत का टारगैट है 'भजन' प्रभु का स्मरण-चिन्तन-संकीर्तन। विशेष कर रात्रि में जाग कर संकीर्तन। इस टारगैट का उपाय है अन्न ना खाना निर्जल रहना।मौन रहना। आदि आदि ।
▶ और हम क्या करते हैं। बहस करते हैं कि पारण कितने बजे है भिण्डी एकादशी में खाय या नहीं। भैयाजी!ये अदरक खा सकते हैं? ये खा सकते हैं?ये कर सकते हैं। आदि आदि।
▶ मेरे बाबा!कुछ कर या मत कर।जो टारगैट है 'भजन' तू वो कर। कैसे भी खा।कुछ भी खा,मत खा,मेरी जान मत खा। येन -केन प्रकारेण भजन कर। भजन टारगैट है।जो हम भूले हुए हैं।
▶ खाना,ना खाना तो इसलिये है कि तू फल-फूल कंद मूल दूध आदि खायेगा तो ये सात्विक आहार लेने से तेरे शरीर में रजोगुण तमोगुण नहीं व्यापेगा
▶ जिससे तू रात्रि जागरण पूर्व संकीर्तन कर पाएगा और भूखा भूखा रहकर भी तो यदि दिनभर छल कपट दुकानदारी रजोगुणी तमोगुणी गतिविधियों में लगा है तो भूखे तो पशु पक्षी गरीब बहुत रहते हैं तू क्या चीज है ?अतः टारगैट भजन और टारगैय पर ध्यान।
▶ उपाय कितने ही चेष्टा से किये जायं लेकिन टारगेट यदि छूट रहा तो क्या परिणाम मिला उपायों से?
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
▶ सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/01/513 , जनवरी 2015 )
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