🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶 🍒 ब्रज की खिचड़ी🍒 🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶 🌻 निताई गौर हरिबोल🌻 💐श्री राधारमणो विजयते 💐 क्रम संख्या 2 ⚡वातावरण का प्रभाव 🍀जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु वातावरण का क्या योगदान होता है – ये बहुत पढा और लिखा था। लेकिन शायद पहली बार अनुभव भी किया 💦 मैने एक वैष्णव मित्र के साथ तीन दिन दो रात्रि श्री राधा कुण्ड में वास किया केवल परम आवश्यक सुविधायों सहित कमरे में श्री राधा कुण्ड के तट पर बने श्री राधा श्याम सुन्दर मंदिर में वास किया, मंदिर द्वारा ठाकुर को निवेदित प्रसाद ही पाया। वहां चल रही अखंड श्री हरिनाम संकीर्तन की ध्वनि को दिन रात श्रवन किया। 🎌श्री राधा कुण्ड स्नान आचमन दर्शन परिकर्मा दास गोस्वामी समाधि पर प्रवचन, कुण्ड तट पर रात्रि - भोजन - नियम आदि से लगा की भजन एवं शन्ति हेतु कितना अनुकूल स्थान है यह 🌱 स्थान और वातावरण का लक्ष्य प्राप्ति में क्या योगदान है – ये शायद आज कुछ कुछ समझ पाया मैं । क्रमशः 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 लेखकः दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻 प्रस्तुति । श्रीलाडलीप्रियनीरू
Saturday, 30 April 2016
ब्रज की खिचड़ी भाग 2
Friday, 29 April 2016
✅ संख्या सहित नाम जप ✅
▶ प्रायः वैष्णव यह
पूछते हैं कि एक निश्चित संख्या में माला करने की क्या आवश्यकता है ,हमें तो जब समय मिलता है
तब माला कर लेते हैं कभी 10 कभी 30 कभी 50।
मैं स्वयं ही कुछ वर्ष पूर्व तक यही सोचता था। और ऐसे ही
करता था। लेकिन आज बात कुछ और है एक और भी प्रेग्नेंट है जो यह कहता है । एक और भी
सैगमैण्ट है,कि माला की जरुरत
ही क्या है?
▶ हम तो हर समय मुख
में नाम करते रहते हैं । कुछ तो यह भी कहते है। कि मन बहुत चंचल है । थोड़ा स्थिर
हो तो माला करें ।ऐसी माला करने से क्या फायदा ,जो मन कहीं और भटके और माला कहीं।
▶ आदि आदि अनेक
पक्ष हैं ।पहली बात तो यह है कि मन की चंचलता जितनी माला करने से दूर होती है ,किसी और साधन से नहीं
होती ।यदि मन की चंचलता ही दूर हो गई तो फिर बात ही क्या है?
▶ दूसरी बात यह है
की आपने यदि श्री चैतन्य चरितामृत पड़ी है वह तो महाप्रभु की आज्ञा थी कि जो
प्रतिदिन एक लाख नाम करता है मैं उसी के घर भिक्षा करूंगा।
▶ यदि संख्या सहित
नाम का महत्व नहीं होता तो महाप्रभु यह बात कभी न कहते हैं श्री हरिदास जी तो
प्रतिदिन तीन लाख नाम करते थे ।यह सर्वविदित ही है ।देखिये!जिस प्रकार हम अपने सब
कर्मों में अनुशासन रखते हैं ।वैसे ही हमें अपने भजन में भी अनुशासन रखना होगा।
▶ जैसे हम समय पर
दुकाने ऑफिस जाते हैं और समय पर घर आते हैं -उसी प्रकार एक निश्चित संख्या में
माला करने पर , करने से पहले ये
भाव,ये दबाव रहेगा कि
माला करनी है और करने के बाद ये संतुष्टि रहेगी कि आज माला कर ली।
▶ कदाचित् किसी दिन
न हो पायेगी तो पश्चाताप रहेगा । कि नियम की माला भी नहीं हो पायी।ऐसे में अगले
दिन कल के नियम को पूरा करना चाहिए ।देखीये!आप कहीं नौकरी करें और मालिक कहे कि भईया जैसी आमदनी होती चलेगी हम तुम को पैसे
देते चलेंगे ।तुम अपने हो चिंता ना करो।
▶ और वह कभी हजार
कभी दस हजार तुम्हें देता जाये तो क्या आपकी संतुष्टि होगी। वह भले ही ₹10000 महीना दे। लेकिन एक
संख्या तो फिक्स करनी ही पड़ेगी ना भले ही वह हर महीने एक्स्ट्रा दस-पांच हजार और
दे दे। वह बोनस है।
▶ इस प्रकार हमें
भी प्रतिदिन एक संख्या निश्चित करनी होगी। इतनी तो करनी ही है । फिर उसके बाद आप
मन- मन में करो माला सहित करो या बिना माला के करो। जब तक संख्या निश्चित नहीं
होगी आपकी प्रगति कैसे आंकी जायेगी ।और
संख्या भी16 माला प्रचलित है।
▶ यह कम से कम है
।और यदि अधिक लगती है तो दो-चार-छः से शुरु करो और धीरे -धीरे सोलह तक लाओ एक
ठीक-ठाक मध्यम वैष्णव को 64 माला यानी एक लाख नाम तो
रोज करना ही बनता है ।चाहिए ही । प्रायः वैष्णव गुरुदेव, विद्वान्,से आप मिलोगे तो वह यही
पूछते है-कितनी माला करते हो यदि संख्या नहीं तो क्या जवाब दोगे।
▶ और आपको खुद भी
पता नहीं चलेगा ।लेकिन यह भी संख्या होगी। तो
आप खुद ही जान जाओगे कि मैं पांच माला से शुरू किया था, और अब बीस करता हूँ।और
यही संख्या जब 25,30,40 पर पहुंचेगी तो आपको
लगेगा कि मेरा भजन बढ़ रहा है ।ठीक उसी प्रकार जैसे कर्मचारी की सैलरी बढ़ती है वह बताता है दूसरे
भी संतुष्ट होते है वह खुद भी संतुष्ट होता है।
▶ इसके बदले में
यदि वह कोई संख्या बता ही ना पाए तो लोग समझते ही बे-रोजगार है या पता नहीं यार
इसकी बात हमें तो समझ नहीं आती। अतः यदि भजन के प्रति भक्ति के प्रति भगवत् प्रेम
के प्रति आप सीरियस में कुछ पाना चाहते हैं -आज से ही अनुशासित होना पड़ेगा। पांच
माला से ही प्रारम्भ करो नियम पूरा होने पर माला को प्रणाम करके
बाकी की और करो। फिर कुछ दिन बाद पांच से छः या सात कर दी।
इस प्रकार साल दो चार साल में 64 पर आकर रुको ।अवश्य अंतर
महसूस होगा ऐसा लगेगा कुछ प्राप्त हो रहा है ।माला हेतु नाम मंत्र हरे कृष्ण
महामंत्र सभी जानते है।
अपनी सम्प्रदाय के अनुसार श्री गुरुदेव या वरिष्ठ
गुरुभ्राता से पूछकर नाम मंत्र करना चाहिए
यह भी बताता चलूँ कि नाम करने में यथाम्भव शुद्धि अशुद्धि का ध्यान रखें -लेकिन
इसमें शर्त नहीं है ।आप नहाये, बिना नहाये, खाते-पीते ,सोते जागते ,ट्रेन में घर में ,दुकान पर, जूते पहने किसी भी स्थिति में नाम कर सकते हैं।नाम में इतनी
शक्ति है कि सर्वावस्थ में आपकी शुद्धि
रखेगा।नाम या माला कभी अशुद्ध नहीं होता।
लगले में पहने कण्ठी शौचालय में जाने पर अशुद्ध नहीं होती
जान बूझकर लापरवाही ना बरतें ।लेकिन इस बात का बहाना बनाकर नाम को टाले नहीं
महिलाएं मासिक में भी नाम कर सकती है ।नाम की माला वह मंत्र की माला प्रथक रखते
हैं नाम में सब छूट है। गुरु मंत्र में सब ध्यान रखना है इसलिए माला अलग-अलग
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/10/522 , अक्टूबर , 2015 )
श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/10/522 , अक्टूबर , 2015 ) |
Thursday, 28 April 2016
✅ कुछ भी खालो ✅
▶ एक मेरे मित्र हैं।दिल्ली में रहते हैं।मेरे से बोले -मैं वृन्दावन आना चाहता हूँ।
▶ वृंदावन की बहुत चर्चा सुनी हैं।मैनें कहा-ठीक है-कभी किसी अच्छे अवसर पर आप को बुलाउंगा।बोले -ठीक है,मैं अनिभज्ञ हूँ।मुझे सब साफ-साफ पूरी तरह बता देना स्पष्ट स्पष्ट।
कुछ दिन बाद मैनें फोन किया और कहा31अक्टूबर को मेरे पिता जी का उत्सव है।
▶ आप इस अवसर पर वृन्दावन आ जाओ।यह एक अच्छा अवसर है।अनेक सन्तों बके दर्शन हो जायेंगे।कीर्तन आदि भी होगा।तुम अवश्य आ जाना।बोले ठीक है।कितने बजे पहुँचना है।क्या रास्ता है ये सब बताओ।मैनें पूछा कि तुम कैसे आओगे ट्रेन,बस या कर से।बोले कार से मैनें बताया
▶ मैनें बतया 6बजे उठ जाना स्नान आदि करके तैयार हो जाना।
▶ 7बजे कार से निकलना और फरीदाबाद-कोसी से आगरा हाइवे पर मथुरा से पूर्व छटीकरा पर लैफ्ट हो जाना।
▶ वहां भक्तिवेदान्त द्वार पर आकर मुझे कॉल करना।आगे में मैनेज कर दूँगा।
▶ फिर तुम उत्सव स्थल पर आना वैष्णव दर्शन करना।संकीर्तन में शामिल होना।वैष्णव सेवा करना प्रसाद पाना।प्रणाम करना आदि आदि।
▶ बोले ठीक है।मेरा तो जीवन ही आनन्द से भर जायेगा।अब मेरे पास दिन में 2-3 फोन रोज आने लगे ।और उन्होंने क्या क्या पूछा यह देखिये-
▶ वो आपने कहा कि 6बजे प्रातः उठना।पांच बजे उठ जाऊँ तो
▶ तैयार होने का क्या मतलब है।धोती बांध क्र आऊँ?पैण्ट नहीं चलेगी।पैजामा कुर्त्ता कैसा रहेगा?
▶ अच्छा कुर्त्ता पाजामा सफेद हो या रंगीन कढ़ाईदार भी चलेगा।
▶ जो पहन कर आऊं वही पर्याप्त है या एक जोड़ा साथ में भी लेकर आऊं ऐसे अनेक प्रश्न।
▶ वो प्रभु जी आपने कार से आने को कहा न। तो कार छोटी लाऊँ या बड़ी?
▶ अच्छा कार सिल्वर कलर वाली या रेड वाली लाऊँ तो कोई हर्ज तो नहीं।
▶ वो प्रभु जी मैं सोचता था ड्राईवर ले आऊँ?
▶ अच्छा!अकेला आऊँ या पत्नी को ले आऊँ?
▶ कुछ सुबह नाश्ता वगैराह घर से लेकर चलें या सुच्चे मुंह आना है?
▶ रास्ते में किसी ढाबे पर कुछ चाय या पराठा खा सकते हैं ? भूख लगने पर।
▶ कोसी से कितने किलोमीटर पर छटीकरा आता है?
▶ प्रभु जी आप को कॉल तो कर लूँगा।आपने कॉल अटेन्ड नहीं की तो। आपका दूसरा कोई नं. हो तो दें।उस स्थान का पता बता दें। आदि आदि।
▶ ऐसे ढेरों प्रश्न वह मुझसे पूछते रहे और मैं यथा संभव उनका समाधान करता रहा। आखिर वो दिन आ गया 31 अक्टूबर का ।उनका कॉल आया ।
▶ छटीकरा से मैंने पहले से एक सेवक को छटीकरा पर खड़ा किया था ।वह उनको उत्सव स्थल पर ले आया। मुझसे मिले मैं भी प्रसन्न हुआ। उत्सव प्रारम्भ होने को था मैं थोड़ा व्यस्त था।
थोड़ी देर बाद देखा तो मुझे दिखाई नहीं दिये। मैंने समझा।कहीं अंदर बाहर अन्य वैष्णव में होंगे चलो आ गये तो पूरा आनंद लेंगे ही ।
▶ वैष्णव आयेंगे तो उनकी कृपा लेंगे । संकीर्तन का आनंद लेंगे। प्रसाद पाएंगे फिर अन्त में उन्हे कुछ शास्त्रचर्चा सुनायेंगे।
▶ मैं कार्यक्रम में व्यस्त रहा आया। कभी ध्यान जाता तो-यही मन में था कि यही नहीं आगे पीछे होंगे ।
▶ लेकिन जब उत्सव समाप्त हो चुका था तो हम थोड़ा सस्ता रहे थे जैसे ही मेरे दिमाग में आया कि वह दिल्ली वाले मान्यवर कहां है तो देखा कि पति पत्नी दोनों सामने से उत्सव उत्सव स्थल पर प्रवेश कर रहै हैं।
▶ मैं चौंका। मैंने कहा-आप! कहां थे ?
▶ बोले-बस!ऐसे ही यहां आए तो मैंने सोचा यहां का आनंद तो अब लेना ही है । मैं सामने जरा इस्कॉन में चला गया था। वहां मंदिर के गेट पर ही था- दर्शन भी नहीं किए थे कि वहाँ हमारा एक सप्लायर मिल गया।
▶ प्रभुजी!दिल्ली में एक दूसरे से मिलना बड़ा मुश्किल हो जाता है। फिर हम थोड़ा एक ही स्थान पर बैठकर डिस्कस करने लग गये।हमने लस्सी पी बडी टेस्टी होती है जी,यहां की लस्सी । बस फिर क्या बातों में हमें पता ही नहीं चला कब 3 घंटो का समय निकल गया चलो कोई नहीं । अब मैं आ गया हूँ।
▶ मैं सन्न! मैंने कहा इसका मतलब तुम उत्सव में थे ही नहीं । अब तो उत्सव समाप्त विश्राम हो गया। 200-300 व्यक्ति यहां थे वैष्णव थे। संकीर्तन था । जिसके लिए मैंने तुम्हें बुलाया। और तुमने खूब तैयारी की लाल कार और सफेद कार-पचासों प्रश्न भी किये, लेकिन जो मुख्य अवसर था-
▶ उसके बारे में ना तो कुछ पूछा, ना ध्यान दिया, ना वह उत्सव अटेण्ड किया- ये क्या किया तुमने?
बोले-नहीं प्रभु जी! मैंने आपकी एक-एक बात मानी । मैं ठीक टाइम से उठा ।सफेद कार से आया ।व्हाइट कुर्ता पजामा पहन कर आया। पत्नी ने भी लाइट कलर की साड़ी पहनी।
▶ ढाबे पर चाय भी नहीं पी सुच्चे मुंह घर से चले । जो-जो आपने कहा मैंने देखो सब माना अब मुझे क्या पता कि यहां हो सप्लायर मिल जायेगा।
▶ मैंने माथा ठोका। ये बात मेरी किसी एक मित्र की नहीं है। ये हमारी आपकी सबकी बात है। एक होता है टारगेट !
▶ एक होता है उपाय । टारगैट को प्राप्त करने के उपाय होते हैं । हम लोग उन पर केंद्रित होते हैं कि 'टारगेट'ही रह जाता है।
▶ अरे भाई !तुम उत्सव के लिए आए थे। उत्सव तो अटेण्ड किया नहीं । और कुर्ते व कार पर विवेचन करते रह गये। यह उधारण एकदम सटीक फिट बैठता है -
▶ एकादशी व्रत पर एकादशी व्रत का टारगैट है 'भजन' प्रभु का स्मरण-चिन्तन-संकीर्तन। विशेष कर रात्रि में जाग कर संकीर्तन। इस टारगैट का उपाय है अन्न ना खाना निर्जल रहना।मौन रहना। आदि आदि ।
▶ और हम क्या करते हैं। बहस करते हैं कि पारण कितने बजे है भिण्डी एकादशी में खाय या नहीं। भैयाजी!ये अदरक खा सकते हैं? ये खा सकते हैं?ये कर सकते हैं। आदि आदि।
▶ मेरे बाबा!कुछ कर या मत कर।जो टारगैट है 'भजन' तू वो कर। कैसे भी खा।कुछ भी खा,मत खा,मेरी जान मत खा। येन -केन प्रकारेण भजन कर। भजन टारगैट है।जो हम भूले हुए हैं।
▶ खाना,ना खाना तो इसलिये है कि तू फल-फूल कंद मूल दूध आदि खायेगा तो ये सात्विक आहार लेने से तेरे शरीर में रजोगुण तमोगुण नहीं व्यापेगा
▶ जिससे तू रात्रि जागरण पूर्व संकीर्तन कर पाएगा और भूखा भूखा रहकर भी तो यदि दिनभर छल कपट दुकानदारी रजोगुणी तमोगुणी गतिविधियों में लगा है तो भूखे तो पशु पक्षी गरीब बहुत रहते हैं तू क्या चीज है ?अतः टारगैट भजन और टारगैय पर ध्यान।
▶ उपाय कितने ही चेष्टा से किये जायं लेकिन टारगेट यदि छूट रहा तो क्या परिणाम मिला उपायों से?
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
▶ सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/01/513 , जनवरी 2015 )
Wednesday, 27 April 2016
✅ कितने पेपर दिए हैं हमने ✅
▶ एक है विद्या और दूसरी है पराविद्या या परमविद्या| हमारे जितने भी लोकिक कलाएं या शिक्षा है - ये सब विद्या के अंतर्गत आती है|
▶ जैसे हाईस्कूल | इन्टर ग्रेजुएट| पोस्ट ग्रेजुएट| लेखन| प्रवचन| एम.बी.ए., एम.बी.बी.एस आदि| ये सब विद्याएं हैं|
▶ अब जब ये सब विद्याएं हैं तो पराविद्या या परमविद्या इनसे तो श्रेष्ठ होगी ही| जैसे वैष्णव से श्रेष्ठ होता है परम वैष्णव| ये पराविद्या क्या है? ये है भक्ति| विद्या यदि कोई सामान्य स्त्री है तो पराविद्या 'वधु' है| ऐसी स्त्री जो दुल्हन बनी हुई है| बेहद सुन्दर आभूषण, हर्ष का संचार और स्त्री जीवन की सफलता की एक ऊँची सीढ़ी है 'वधु'| वही 'वधु' है - श्रीकृष्ण भक्ति|
▶ अब जब हम डॉक्टर या पि.एच्.डी. होने की बात जोड़ भी दें तो कम से कम ग्रेजुएट होने के लिए भी जीवन के कम से कम 22-24 वर्ष देने पड़ते हैं| तब हमारे हाथ में एक चिड़िया के बच्चे के सामान ग्रेजुएट डिग्री हाथ लगती है|
▶ और ग्रेजुएट के प्रति लोगों का भाव होता है की चलो 'पढ़ा लिखा तो क्या? कम से कम अनपढ़ नहीं है| 22-24 साल जीवन के देने के बाद क्या हाथ लगा? मोहर क्या लगी की ये मान्यवर 'अनपढ़' नहीं है|
▶ और अधिक योग्य होने के लिए जीवन के और 6-8 साल कड़ी म्हणत करके हम किसी लायक बनते हैं और थोड़ी ठीक ठाक स्थिति या अपने अस्तित्व को खतरे से बाहर करते करते ४० वर्ष के हो जाते हैं| और यह भी सब नहीं| कुछ प्रतिशत| तो वही मई ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ की एक सामान्य सी विद्या के लिए 40 वर्ष जीवन के खर्च कर देने वाले हम क्या 'पराविद्या' 'परमविद्या' श्री कृष्णा भक्ति के लिए कितना परिश्रम या इनपुट का योगदान देते हैं?
▶ मेरे विचार से बिलकुल नहीं| हमने कभी भी भक्ति को एक कोर्स की तरह गंभीरता से नहीं लिया और बातें....! किसी से भी भक्ति उपदेश की बातें करिए, ऐसे उपदेश देगा जैसे पी.एच्.डी. कर रखी है|
▶ भक्ति का भी एक कोर्स है| सत्संग इसकी क्लास है| श्रवण-गुरु, शिक्षागुरु ही इसके टीचर है| नियमित श्रवण| नियमित ग्रन्थ अध्ययन| नियमित नाम-जप| संकीर्तन| दर्शन| सेवा-पूजा इसका होमवर्क है|
▶ यदि हम गंभीरता से पराविद्या के बारे में दक्ष होना चाहते हैं तो हमे अपने जीवन का अनेक समय| अनेक वर्ष| यहाँ तक की एक से अधिक जन्म इसको जान ने समझने के लिए देने होंगे| तब जाकर हमे इसका परिचय मिल पायेगा| अन्यथा तो अन्दर झांकें तो हाल सामने है|
▶ ऐसा नहीं है ऐसा कोई नहीं कराता है| किया है हमारे गौस्वामिपाद ने- श्रीरूप, सनातन, जीव, गोपल्भात्त आदि ने किया और पाया| आज भी फुल टाइमर संत हैं| जिन्होंने बी.ए. भले ही न किया हो, लेकिन 'पराविद्या' के अध्ययन में वे अपना जीवन दे रहे हैं|
✅ कितने पेपर दिए हैं हमने ✅
▶ जीवन दे रहे हैं और उन्हें प्राप्त भी होगा| हो रहा है| उनसे कभी चर्चा हो तो कहते है - 'कहों! बहुत कठिन है| गोलोक तो क्या, ब्रजरज भी मिल जाए तो अगले जन्म में कुछ बात बने और हम जीवन का एक भी वर्ष व्यवस्थित रूप में पराविद्या को न देकर-गोलोक और श्रीकिशोरी जी की गोद की आशा रखे बैठे हैं|
▶ महाराज! बहुत कठिन है डगर पनघट की| हर महीने टेस्ट, फिर अर्धवार्षिक परीक्षा! फिर वार्षिक| फिर बोर्ड के पेपर| फिर प्रैक्टिकल| फिर जाने क्या क्या पापड़ बेलते हैं हम एक सामान्य सी डिग्री के लिए| इस पराविद्या भक्ति के लिए क्या हमने ऐसा कुछ किया? यकीन मानिए ये जो भी कुछ किया या कर रहे हैं- वह न के बराबर है| जोर लगाना होगा| अभी भी समय है| सोचें| ज़रा सोचें हम??
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
सम्पादकीय - श्रीहरिनाम पत्रिका (अंक 45/03/515 , मार्च, 2015 )
Tuesday, 26 April 2016
ब्रज की खिचड़ी भाग 1
🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶 🍒 ब्रज की खिचड़ी🍒 🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶 🌻 निताई गौर हरिबोल🌻 💐श्री राधारमणो विजयते 💐 क्रम संख्या 1 🍜 ब्रज की खिचड़ी -- कुछ अटपटा नाम है , लेकिन चटपटा स्वाद ! रस और अध्यात्म से भरपूर। 👳🏻यह ग्रन्थ रचित है दासभास श्री गिरिराज नांगिया जी द्वारा। 🍩 कैसे पकी यह खिचड़ी : अनेक पदार्थों के सम्मिश्रण को कहते हैं खिचड़ी। उसी खिचड़ी के गुणों को सार्थक करता है यह ग्रन्थ । इस ग्रन्थ में वैष्णव आधार को, वैष्णव भक्ति को सुदृढ़ करने के अनेक मार्ग हैं , अर्थात इस ग्रन्थ में उन छोटी - छोटी बातों का समावेश है , जिनका ज्ञान प्रत्येक वैष्णव को होना अनिवार्य है। 👷🏻 पाठकगण भी बड़े - बड़े निबंधों को पढ़ने कीे बजाए , सार में अधिक रूचि लेते हैं । इस ग्रन्थ में छोटी - छोटी चीजों का उल्लेख करके वैष्णव आधार को दृढ़ करने का प्रयास किया गया है। 🌱आशा है , हमारा यह प्रयास अवश्य ही आप सभी के ह्रदय में ज्ञान को प्रकाशित कर आपको भक्ति मार्ग की और अग्रसर करेगा। क्रमशः 🌺जय राधारमण 🌺जय निताई लेखकः दासाभास डा गिरिराज नांगिया श्रीहरिनाम प्रेस वृन्दावन प्रस्तुति : श्रीलाडलीप्रियनीरू
सम्मान
ये कोई बुरी चीज़ नहीं । यदि बुरी होती तो दूसरों को सम्मान देने का आदेश न किया होता शास्त्र में ।
हाँ इसकी इच्छा । चाहना बुरी है ।
जेसे मुक्ति । ये भी कोई बुरी नही । इसकी भी इच्छा करना पिशाची है
आप के आचरण । व्यवहार । कार्य के कारण आपको स्वतः सम्मान मिलेगा । अवश्य मिलेगा । मिलने दीजिये ।
सम्मान को कीमत मत दीजिये अपितु पड़ा रहने दीजिये एक तरफ कौने में उपेक्षित सा ।
लेकिन सम्मान मिले । ये इच्छा रखकर कार्य करना । ये इच्छा पिशाची ह
सबसे बड़ी बात सम्मान मिले तो हम उच्छलें नही । न मिले या अपमान मिले तो निराश न हों । कठिन ह । असम्भव नही ।
समस्त वैष्णवजन को सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
Sunday, 24 April 2016
🎤~~~दासाभास जी कहिन~~~🎤
~~~दासाभास जी कहिन~~~
85 वर्ष मे माला ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/85-varsh-me-mala-me- mushkil
अत्यन्त विरक्त का मतलब ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/atyant-virakt-ka- matlab
भजन मे उतार चढाव ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/bhjan-me-utar-chadav
एकादशी सम्बन्धि ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/ekadshisambndhi
हनुमान जी को राम जी का भोग ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/hanuman-ji-ko-ram-ji- ka-bhog
माला चुहा काट जाये तो ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/mala-chuha-kaat-jaye
नाम कि महिमा ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/naam-mahima-2
नवधा भक्ति नाम कि महिमा ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/navdha-bhktinaam- mahima
सोते समय सिरहन किस ओर ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/sote-smaay-sirahana- kis-or
व्यवहार मे जीना ~> http://yourlisten.com/ Dasabhas/vyvhaar-me-jeena
Friday, 22 April 2016
Muk Drishta
✅ मूक दृष्टा ✅
▶ ये पहली सीढ़ी है कि कोशिश करके इस संसार में होने वाली क्रियाओं को
जेसे कोई
अकड़ू ह । कोई विनम्र ह । कोई धनवान ह । कोई गरीब है । कोई किसी से बोल नही रहा है
। कोई अधिक बोलता हा । कोई नारा, होता ही
नही । कोई क्षण क्षण में नाराज़ होता है
▶ कोई कैसा कोई कैसा । बस देखो । कुछ समय में ये
सब गुण दोष दीखना भी बन्द हो जाएंगे ।
▶ बस किसी को बदलने की मत सोचो । और उसके बारे
में भी मत सोचो । सोचो बस यही कि वाह प्रभु तेरे रंग निराले । अपनी सृष्टि में
कैसे कैसे जिव बनाये तूने ।
▶ ठीक वेसे जेसे चूहे । बिल्ली । शेर । हाथी को
देख कर कभी नही सोचते कि ये हाथी इतना मोटा क्यों है ।
▶ ठीक इसी प्रकार ये मत सोचो की ये ऐसा क्यों है
। वो वेसा क्यों है । अपितु उनमे जो कमी लगे । उसको अपने म न आने दो
🌹समस्त वैष्णवजन को मेरा सादर प्रणाम🙏
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
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