Friday, 27 April 2012

204. SHAR SHAIYYA


 शर-शैया : मनमोहन सिंह के घोटाले

-शर शैया पर पड़े भीष्म ने कहा कि मैं अपने पिछले एक सौ जन्मों को देख सकता हूँ. 
मुझे स्मरण नहीं आता कि मैने कोई ऐसा पाप किया हो कि मुझे शर शैया पर सोने का कष्ट भोगना पड़ रहा है.

-एक ऋषि ने कहा-कि तुमने इससे ११२ वें जन्म पीछे शिकार को जाते हुए 
रास्ते में पड़े एक सर्प को तीर से उछालकर झाड़ियों में फेंका था. 
वह सर्प  बबूल के काँटों में फंस गया और मर गया. उस पाप के फलस्वरूप तुम्हें यह शर शैया प्राप्त हुई है.

-भीष्म का प्रश्न था कि इस पाप का फल ११२ वर्ष बाद आज क्यों? 
पहले किसी जन्म में क्यों नहीं मिला. ऋषि ने कहा कि तुम्हारे ये समस्त जन्म शुभ कर्मों से युक्त थे 
अतः कहीं उस पाप को भोगने का कारण नहीं बना. अवसर नहीं मिला. वह शुभ कर्मों के प्रभाव से दबा रहा.

-ऋषिवर ! तो इस जन्म में मैने ऐसा क्या किया? 
भीष्म ! इस जन्म में तुमने अपने अहंकार स्वरुप अपने वचन में फंसकर दुष्ट कौरवों का अन्न खाया. 
और जानते हुए भी द्रोपदी को सभा में नग्न करने वालों का विरोध 
तो किया ही नहीं अपितु  शांत रहे. इस कारण इस पाप के फल को अवसर प्राप्त हुआ.

-यह ठीक उसी प्रकार है जैसे मनमोहन सिंह जब तक प्रधानमंत्री है, 
तब तक उसके बड़े से बड़े घोटाले दबे हुए है. कुर्सी से हटते ही एक-एक करके सब निकल कर सामने आयेंगे.

-इससे यह भी उपदेश मिलता है कि अनावश्यक-वृथा चेष्टा भी नहीं करनी चाहिए. 
सांप पड़ा था, पड़ा रहता. तुम सावधानी से निकल जाओ. चेष्टा  तो थी कि इसे रास्ते 
से हटा दो, किसी को काटे नहीं-और यह चेष्टा शर शैया का कारण बन गयी.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

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