Friday, 13 April 2012

200. DAINYA


दैन्य 

एक उच्च अधिकारी या क्रिमनल या 
अपने से अति श्रेष्ठ के समक्ष हम दीन हो रहे हैं,
विन्रमता से पेश आ रहे हैं-यह ठीक है कहीं न कहीं ऐसी परिस्थिति है, मज़बूरी है

लेकिन अपने में श्रेष्ठता  -  उच्च-कुल, उच्च विधा, उच्च रूप,  
उच्चता का समावेश होते 
हुए भी अपने से हीन के समक्ष भी विनर्म होना 
वास्तविक दैन्य या विन्रमता है 

राजा राम अपरिमित श्री, बल, बुद्धि, ऐश्वर्य के होते हुए भी 
समुद्र की तीन दिन तक 
मार्ग देने हेतु प्रार्थना करते रहे. यह है दैन्य 

महाप्रभु ने कहा है-'अमानिना मानदेन'
अर्थात स्वयं अमानी होकर दुसरे को मान दो-
अथवा जो मान योग्य नहीं भी है, उसे भी मान दो.

भक्ति का प्रथम लक्षण है दैन्य, 
जितना अधिक दैन्य : उतनी अधिक भक्ति 

JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia
Lives, Born, Works = L B W at Vrindaban

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