✔ *एकादशी व्रत* ✔
▶ प्राय सभी वैष्णव एकादशी व्रत रखते हैं । एकादशी व्रत का जो सामान्य नियम है, वह है कि साधक दिनभर निर्जल रहे । जल भी ना पीए ।
▶ फिर क्योंकि यह अभ्यास का काम है । सहज नही सभी के लिए । फिर शास्त्र में छूट दी गई कि आप जल ले लीजिए ।
▶ खाली जल से भी काम नहीं चलता तो
कोई फल ले लीजिए
▶ फल से भी नहीं चलता तो फूल ले लीजिए । दूध ले लीजिए । फलाहार ले लीजिए । यह छूटें हैं ।
▶ और दासाभास जानता है कि यदि निर्जल के 100 नंबर हैं तो छूट देने पर नंबर कम होते जाते हैं
▶ इसलिए यथासंभव शरीर से भजन होता रहे अपितु आज के दिन अधिक से अधिक रोज के नियम से कम से कम डबल भजन हो इसके लिए जैसा भी एकादशी का आहार आपको ठीक लगे । आप ले लीजिए ।
▶ एकादशी का मुख्य केंद्र है भजन । दूसरा है रात्रि जागरण । तीसरा हे प्रभु के पास बैठ के उन का स्मरण लीला चिंतन । नाम जप आदि ।
▶ दासाभास का निवेदन है कि खाना न खाना तो शरीर को सात्विकता, शांति, उद्विग्नता रहित विकार रहित बनाए रखने के लिए है ।
▶ दासाभास खाए तो फल और उस पर चकाचक नींबू डाल दें । चकाचक चाट मसाला डालें । चका चक उसमें फलाना फ्लेवर डाल दें चकाचक कुछ भी डाल दें और उसको एक रजोगुणी डिश बना कर खाएं तो आप समझ सकते हैं कि वह रजोगुण उत्पन्न करेगा ।
▶ शरीर में विकार उत्पन्न करेगा केवल वस्तु पर नहीं है मोटी बात है भोजन ऐसा हो जो शरीर में विकार प्रदान न करें । मन में चंचलता पैदा ना करें । शरीर चलता भी रहे और अविकारी । शांत रहे । जिससे हम भजन करें ।
▶ इसके विपरीत हमने भोजन पर तो नियंत्रण कर लिया फल फूल खा लिया । अन्न नहीं खाया लेकिन दिन भर राग द्वेष निंदा करते रह ।
▶ सास बहू के या अटपटे सीरियल देखते रहे, फिल्म देखते रहे, लड़ते रहे , झगड़ते रहे, तो आप सोचिए कि आपने कितना व्रत का पालन किया ।
▶ कदाचित ऐसा भी होता है कि भूल से दासाभास अन्न खा लेता है या दवा आदि कुछ ऐसे कारण बन जाते हैं कि कुछ गड़बड़ खा लेता है ।
▶ तो इसमें भी कदापि ऐसा नहीं है कि इस व्रत को फिर आगे पूरे दिन छोड़ दिया जाए । व्रत को चालू ही रखा जाए ।
▶ वह एक भूल है । उस भूल के लिए हो सकता है कुछ नंबर कम हो जाए । वैसे भी हम लोग जो एकादशी व्रत रखते हैं वह 100 नंबर का तो होता ही नहीं है ।
▶ हम गृहस्थ 25 । 50 नंबर का व्रत रखते हैं । उसमें यदि पांच नंबर कट जाएंगे तो कट जाए बाकी के 40 । 50 नंबर तो हमें प्राप्त करने ही चाहिए । भूल होने पर व्रत का त्याग नहीं करना है यथासंभव ।
▶ यह दासाभास पुनः कहेगा कि भजन पर केंद्रित करें । धीरे धीरे हर एकादशी को थोड़ा थोड़ा भजन बढ़ाएं ।
▶ एकादशी के 1 दिन पहले अपनी सारी माया को समेट दें कि कल एकादशी है और मैं भजन करूंगा या करूंगी ।
▶ प्रयास से दासाभास को सफलता मिली है । आपको भी मिलेगी धीरे धीरे । मिलेगी । एक दिन में कुछ नहीं होगा । अतः लगे रहिए । लगे रहिए
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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