💫 योग्य गुरु नहीं मिल रहे ? 💫
🌈 परोपकारी, समाजसेवी, शरीर धर्मा कुछ जन तो ऐसे हैं,
जो बाह्य शरीर धर्म, पाप से मुक्ति और पुण्य प्राप्ति में
लगे हैं, वे तो यह मानते हैं कि हमें 'गुरु' धारण करने की
आवश्यकता ही नहीं, हम इस पचड़े में नही पड़ते।
🌈 दूसरे कुछ बेहतर जन ऐसे हैं,
जिन्हें इन शरीर धर्मों से ऊपर आत्मधर्म का परिचय
मिला है, उन्हें पता चल गया है कि अध्यात्म में अनेक
मत, पथ हैं, मुझे किसी एक पथ पर अनन्यता से
यदि चलना है तो अवश्य किसी सद्गुरु की
शरण लेनी ही होगी- यह आवश्यक है ।
🌈 ऐसे जन भी फिर यह सोचते हैं कि प्रायः धर्माचार्य,
कथावाचक, आश्रम, मठधारी, हमें तो मायात्याग का
उपदेश दे रहे हैं और स्वयं माया बटोरते हुए विलासी जीवन,
प्रतिष्ठा, रजोगुण में व्यस्त हैं- ये गुरु होने लायक नहीं ।
🌈 इन विचारों के मूल में मुख्य है- हमारी स्वयं की
योग्यता- अयोग्यता। ठीक वैसे, जैसे हम प्रवेश परीक्षाएं
देते हैं और हमारा नम्बर आता है हजारवां, तो हमें अच्छे
काॅलेज में प्रवेश नहीं मिलता, हल्के काॅलेज में भी लाखों
रुपये डोनेशन देकर मुश्किल से मिलता है
🌈 एवम् जिनका दसवां, बीसवॉं नम्बर आता है
उनके पास एक नहीं अनेक काॅलेज के आॅफर आ जाते हैं ।
बिना फीस लिए उनका प्रवेश हो जाता है,
डोनेशन की तो कोई बात ही नहीं ।
🌈 अतएव परिणाम यह निकलता है कि यदि हममें एक अच्छे
शिष्य के गुण हैं योग्यता है तो हमें एक अच्छे संत,
सद्गुरु सहज प्राप्त हो जाते हैं। अन्यथा तो हर एक
अयोग्य शिष्य भी भगवद्प्राप्त सिद्ध सद्गुरु चाहता है ।
🌈 लेकिन ऐसा गुरु मिलेगा कैसे और क्यों ?
सन्तों की, भगवद् प्राप्त वैष्णवों की आज भी कमी नहीं,
डिजर्व कीजिए फिर डिजायर कीजिए ।
🌈 आपकी योग्यता अनुसार आपको गुरुदेव प्राप्त होंगे ही।
बिना गुरु के जो भजन होगा, उसी से पहले
गुरु प्राप्त होंगे, फिर गोविंद ।
🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम
🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚
🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW- Lives Born Works at Vrindabn
धन्यवाद!!
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