Sunday, 27 May 2018

Fislan । फिसलन



☑️ फिसलन ☑️

☑️ अड़चानानंद जी ने
लिखा
न मैं कोई आचार्य हूँ,
न गोस्वामी,
न ब्राह्मण, न सन्त,
मैं तो आप सब
जैसा ही एक
साधक हूँ ।
आप फिर भी
सुरक्षित हो

☑️ लोग मुझे
श्रेष्ठ समझने लगे हैं ।
मेरे इर्द गिर्द
बहुत फिसलन है ।
पता नहीं कब
इसमें मैं
फिसल जाऊँ
और स्वयं
अपने हाथ से
निकल जाऊँ ।

☑️ अतः आपकी
सबसे बड़ी सेवा
यही है कि मुझको
संभाले रहें ।
मुझे फिसलने से
बचाते रहें ।
मैं फिसलूँ ही नहीं
यदि एक बार
फिसल गया तो फिर
संभल नहीं पाऊँगा।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
LBW - Lives Born Works at Vrindaban
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम


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Wednesday, 23 May 2018

Initiation - A Divine Knowledge । दीक्षा - एक दिव्य ज्ञान


🌎  दीक्षा  -  दिव्य ज्ञान  🌎

🌎 जगत में जिस प्रकार उपनयन ( जनेऊ) के बिना ब्राह्मण को
अपने कर्म, यज्ञ, अध्ययन आदि कर्मों का अधिकार नहीं रहता,
उपनयन के बाद अधिकार होता है, इसी प्रकार अदीक्षित मनुष्यों
का भी भगवत् मंत्र अर्चनादि में अधिकार नहीं है । इसलिए अपने को दीक्षित करना चाहिए ।।

🌎 जो व्यक्ति विष्णु दीक्षा को
प्राप्त नहीं होते, अथवा जो जनार्दन की पूजा नहीं करते, जगत में
उन्हीं को 'पशु' कहा जाता है । उनके जीवन धारण का क्या फल
है ?

🌎 जो दिव्य ज्ञान प्रदान करती है और पापसमूह को नाश करती
है, तत्व - कोविद गुरुजनों ने उसका नाम "दीक्षा" कहा गया ।।

🌎 जिस प्रकार रस ( पारे) के विधान द्वारा कांसा भी सोना बन जाता
है, अर्थात यथा विधि पारे के संयोग से काँसा भी सुवर्ण बन जाता
है। इसी प्रकार दीक्षा- विधि से मनुष्यों में भी द्विजत्व उत्पन्न हो
आता है । दीक्षित व्यक्ति का शरीर भजन के उपयोगी अप्राप्त शरीर
को प्राप्त करता है ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
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समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम


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Sunday, 6 May 2018

Guru Sharanaagati | गुरु - शरणागति



🍁  गुरु - शरणागति  🍁

🍁 भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जब उनके भक्तजनों का संग
प्राप्त होता है और उनके मुख से भक्ति की महिमा सुनी जाती है,
तो उस भक्ति को प्राप्त करने की अभिलाषा जाग उठती है । उसकी
पूर्ति के लिए मनुष्य को सद्गुरु की शरण ग्रहण करनी चाहिए;
क्योंकि श्री गुरुचरण का आश्रय लेने वाला व्यक्ति ही श्रीभगवान
तथा उनकी भक्ति के तत्व को जान सकता है ।।

🍁 मनुष्य इस लोक में अनेक दुखों का नित्य अनुभव करता है
और शास्त्रों में सुना जाता है कि परलोक स्वर्ग नरकादि लोकों में भी
असहाय यातनाएँ भोगनी पड़ती हैं। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को इन
समस्त दुःखों से छुटकारा पाने की इच्छा करनी ही चाहिए ।।

🍁 श्रीदत्तात्रेय जी ने कहा है  ( श्री भा0 11। 9 । 29 ) - बुद्धिमान व्यक्ति
को अनेक जन्मों के बाद अति दुर्लभ मनुष्यतन की प्राप्ति होती है ।
मनुष्य तन ही एक मात्र परमार्थ या भगवत् प्राप्ति का कराने
वाला है । किन्तु यह मनुष्य तन भी नाशवान है । इसलिए जब तक
इस तन की मृत्यु नहीं होती तब तक यत्नपूर्वक संसार के बन्धन
से मुक्त होने का शीघ्र उपाय करना चाहिए । अनेक प्रकार के विषय
भोग तो पशु आदि समस्त योनियो में भी प्राप्त होते हैं ।।

🍁 स्वयं भगवान ने भी कहा है, (श्री भा0 11 । 20 । 17) समस्त
मंगलों का मूल मनुष्य तन अति दुर्लभ है, मेरी कृपा से सहज में
नौका के रूप में यह प्राप्त होता है, गुरु रूप कर्णधार ( केवट )
विद्यमान है, फिर मेरा स्मरणरूप अनुकूल वायु इस नौका को
प्राप्त है, फिर भी जो मनुष्य इन सब साधनो को पाकर संसार
समुद्र से पार नहीं होता, वह आत्मघाती है, अपनी हिंसा करने
वाला है ।।

( श्रीहरिभक्तिविलास ग्रंथ में वर्णित )

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को मेरा सादर प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn

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Thursday, 3 May 2018

Do Aankhe । दो आंखे


☀️  दो आँखें  🌝

🌝 एक वैष्णव हेतु आचार एवं प्रचार
अपनी दो आँखों के समान है ।
किसे बंद करे, किसे खोले ?

☀️ यदि अन्तर्मुखी होकर
भजन करेगा तो
'जीवे दया' कैसे होगी ?
अन्य जीव- जगत का उद्धार
कैसे होगा, करना ही है ।
सन्त का स्वभाव है

🌝 और यदि प्रचार में ही
लग जायेगा तो भजन कब करेगा ।
भजन का आचरण छूट जायेगा ।

☀️ लेकिन शास्त्र सन्त कहते हैं कि
दोनों में संतुलन रखना होगा
यदि प्राथमिक साधक हो तो
आचरण अधिक, प्रचार कम
और जैसे-जैसे अनुभव
मिलता जाए प्रचार भी करो ।

🌝 इतना प्रचार नहीं कि
आचरण-भजन छूट जाय,
एक आँख फूट जाय,

☀️ हमारे पूर्व के सन्तों ने
गोस्वामीपाद ने निष्ठा पूर्वक
भजन आचरण किया और
प्रचार हेतु अनन्त ग्रंथों की
रचना की है जिससे हम
भजन की शिक्षा ले रहे हैं ।

🌝 अतः आचरणशील प्रचारक बनना है,
आचरण हीन नहीं । यदि भजन छूटे
आचरण छूटे तो भले ही प्रचार कम
कर दें। लेकिन भजन बंद तो क्या
कम भी नहीं होना चाहिए ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय  निताई ।। 🐚

🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

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Wednesday, 2 May 2018

Yogya Guru Nahi Mil Rahe । योग्य गुरु नही मिल रहे


💫 योग्य गुरु नहीं मिल रहे ? 💫

🌈 परोपकारी, समाजसेवी, शरीर धर्मा कुछ जन तो ऐसे हैं,
जो बाह्य शरीर धर्म, पाप से मुक्ति और पुण्य प्राप्ति में
लगे हैं, वे तो यह मानते हैं कि हमें 'गुरु' धारण करने की
आवश्यकता ही नहीं, हम इस पचड़े में नही पड़ते।

🌈 दूसरे कुछ बेहतर जन ऐसे हैं,
जिन्हें इन शरीर धर्मों से ऊपर आत्मधर्म का परिचय
मिला है, उन्हें पता चल गया है कि अध्यात्म में अनेक
मत, पथ हैं, मुझे किसी एक पथ पर अनन्यता से
यदि चलना है तो अवश्य किसी सद्गुरु की
शरण लेनी ही होगी- यह आवश्यक है ।

🌈 ऐसे जन भी फिर यह सोचते हैं कि प्रायः धर्माचार्य,
कथावाचक, आश्रम, मठधारी, हमें तो मायात्याग का
उपदेश दे रहे हैं और स्वयं माया बटोरते हुए विलासी जीवन,
प्रतिष्ठा, रजोगुण में व्यस्त हैं- ये गुरु होने लायक नहीं ।

🌈 इन विचारों के मूल में मुख्य है- हमारी स्वयं की
योग्यता- अयोग्यता। ठीक वैसे, जैसे हम प्रवेश परीक्षाएं
देते हैं और हमारा नम्बर आता है हजारवां, तो हमें अच्छे
काॅलेज में प्रवेश नहीं मिलता, हल्के काॅलेज में भी लाखों
रुपये डोनेशन देकर मुश्किल से मिलता है

🌈 एवम् जिनका दसवां, बीसवॉं नम्बर आता है
उनके पास एक नहीं अनेक काॅलेज के आॅफर आ जाते हैं ।
बिना फीस लिए उनका प्रवेश हो जाता है,
डोनेशन की तो कोई बात ही नहीं ।

🌈 अतएव परिणाम यह निकलता है कि यदि हममें एक अच्छे
शिष्य के गुण हैं योग्यता है तो हमें एक अच्छे संत,
सद्गुरु सहज प्राप्त हो जाते हैं। अन्यथा तो हर एक
अयोग्य शिष्य भी भगवद्प्राप्त सिद्ध सद्गुरु चाहता है ।

🌈 लेकिन ऐसा गुरु मिलेगा कैसे और क्यों ?
सन्तों की, भगवद् प्राप्त वैष्णवों की आज भी कमी नहीं,
डिजर्व कीजिए फिर डिजायर कीजिए ।

🌈 आपकी योग्यता अनुसार आपको गुरुदेव प्राप्त होंगे ही।
बिना गुरु के जो भजन होगा, उसी से पहले
गुरु प्राप्त होंगे, फिर गोविंद ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम

🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
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🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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Tuesday, 1 May 2018

Dham Vaas। धाम वास


🌺 धाम वास 🌺

🌺 प्रायः देखने में आता है कि
अच्छे निष्ठावान साधको को भी
वृंदावन वास मुश्किल से मिलता है
अनेकानेक अड़चनें आती हैं ।
इससे धैर्य नहीं खोना चाहिए ।
ये धाम निष्ठा को और अधिक
परिपक्व करने के लिए होता है
जैसे- बी.ए, बी.काम सहज में
हो जाता है और इनकी कोई
बखत भी नहीं ।

🌺 सुलभता से प्राप्त होने पर साधक
बार बार घर भागता है ।
कभी गर्मी कभी सर्दी
या अन्य किसी कारण से ।
जिसे यदि बड़ी मुश्किल
से धाम वास मिलता है,
वह फिर सहज धाम
छोड़ता नहीं और धाम निष्ठा पूर्वक
धाम का आनंद लेता है ।

🌺 ठीक वैसे जैसे आई.ए. एस. करना
अत्यधिक कठिन होता है
लेकिन यदि एकबार हो गये तो फिर
जीवन भर की गयी।

🌺 ये जो अड़चने हैं-
ये आई. ए. एस. की प्रतीक हैं ।
अतः इन्हें परीक्षा मानिये
और प्रयास करते रहिये।
बेहद अड़चनो के बाद यदि एकबार
आप आ गए तो फिर वापिस जाने
का नाम नहीं लोगे
और ठाकुर भी यही चाहते हैं
आपसे इसलिए पक्का कर रहे हैं ।

🙏 समस्त वैष्णव वृन्द को दासाभास का प्रणाम

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🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज नांगिया
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