✔ *अधिक दुःख । अधिक भजन* ✔
▶ यदि हमने बड़ी कार खरीदनी है तो उसके लिए अधिक धन की व्यवस्था करनी होगी
▶ इसी प्रकार यदि हमने कोई बड़ी कामना की पूर्ति करवानी है तो हमें अधिक भजन करना होगा
▶ अथवा कोई बड़ा दुख कटवाना है तो अधिक भजन करना होगा
▶ जितना बड़ा दुख उतना बड़ा भजन । जितनी बड़ी कामना उतना अधिक भजन
▶ यह बात आर्त या दुःख निवृत्ति चाहने वाले भक्तोंं के लिए है ।
▶ विशुद्ध भक्तों के लिए नहीं वह तो श्रीकृष्ण को सुख देने के लिए भजन करते हैं । वह अच्छी तरह जानते हैं अधिक भजन करने से कृष्ण को अधिक सुख होगा
▶ ठीक वही सिस्टम दुखी भक्तों के लिए दुख दूर करने के लिए लागू होता है
▶ यदि आप के दुख दूर नहीं हो रहे हैं तो मानिये कि पर्याप्त भजन या जितना भजन चाहिए उतना नहीं हो रहा ह
▶ समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम
॥ जय श्री राधे ॥
॥ जय निताई ॥
लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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