🙊 प्रतिष्ठा की आशा 🙉
वैष्णव शास्त्र में प्रतिष्ठा को शूकर की विष्ठा कहा गया है । एक हमारी विष्ठा होती है । वो शूकर का मुख्य भोजन है । फिर उसकी जो विष्ठा होती है
🙊 सम्भवतः सृष्टि की सबसे निकृष्ट वस्तु । ये है प्रतिष्ठा । प्रतिष्ठा शूकर की विष्ठा जेसी सबसे निकृष्ट वस्तु है ।
🙈 गोस्वामी पाद ने प्रतिष्ठाशा शब्द प्रयोग किया है । प्रतिष्ठा से बहुत अधिक खतरनाक । 100 गुनी खतरनाक है प्रतिष्ठा की आशा ।
0⃣3⃣ पूरी सृष्टि में तीन ही इच्छाएं हैं
1 । धन की इच्छा
2 । पुत्र सन्तान के हित की इच्छा
3 । प्रतिष्ठा यश की इच्छा
🐗 यदि कोई अच्छा काम करेगा तो प्रतिष्ठा उसके पीछे भागेगी । पीछे भागने पर भी मन में बदबू आने लग जाए ।
🐗 सभा में यदि विशेष स्थान मिल जाय तो ये माने । मर गए आज । और यदि माला लेकर आता हुआ दीख जाए तो समझ ले की जूते पड़ने वाले हैं ।
🌹🌹लेकिन ऐसा होना बहुत ही कठिन और मुश्किल है । फिर भी दिल दिमाग में यदि प्रतिष्ठा के प्रति घ्रणा बनी रहेगी तो यह धीरे धीरे कम हो जाएगी ।
🌷🌷एक स्थिति के बाद श्रेष्ठ साधक जब सम स्थिति में आ जाता है तब वह इस प्रतिष्ठा से ऊपर उठ जाता है । न प्रतिष्ठा उसे अच्छी लगती है ना बुरी लगती है कोई करता है तो करता रहे और कोई नहीं करता है तो मन में खेद नहीं हो ।
🐿 फिर भी । फिर भी प्रतिष्ठा की आशा बहुत ही खतरनाक है और यह हमारा उद्देश्य तो होना ही नहीं चाहिए ।
💧💧हम टेलीग्राम पर पोस्ट लिखते हैं छिपी भावना यदि यह है कि लोगों को अच्छी लगे और लोग यह कहें कि वाह । दासाभास ने क्या बात लिखी है । तो समझिए कि हम शूकर की विष्ठा खा रहे हैं ।
🍎यह आशा बहुत खतरनाक है । इससे सदैव बचना चाहिए ।
भगवद सुख ।
वैष्णव जन का आनंद ।
भगवद भक्ति का संग ।
भजन भक्ति का प्रचार ।
🆒 यदि हमारे मन मस्तिष्क में रहेगा तो हम बहुत हद तक इस भाव से बचे रहेंगे ।
🔴🔴 यह सारी बातें अपने हृदय को टटोलने की है मुझसे या किसी से कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है । हमें अपने आपको देखना है कि हमारे कार्य में हमारा उद्देश्य क्या है ।
🏺🏺और कार्य महत्वपूर्ण नहीं होता । कार्य का उद्देश्य महत्वपूर्ण होता है । एक डाकू द्वारा भी पेट में चाकू चलाया जाता है और एक डॉक्टर द्वारा भी पेट में चाकू चलाया जाता है । दोनों के कार्य एक से हैं । उद्देश्य बिल्कुल विपरीत ।
🙄 इसलिए सावधान । बहुत सावधान 🙄
समस्त वैष्णव जन को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn