Tuesday, 28 February 2012

186. krishn ko nahi pana hai



कृष्ण को नहीं पाना है !

कृष्ण को तो कंस ने भी प्राप्त किया था
पूतना ने भी प्राप्त किया था
दुर्योधन ने भी प्राप्त किया था
और भी बहुतों ने प्राप्त किया

हमें उस को पाना है, जिसे श्री राधा ने प्राप्त किया
और राधा ने कृष्ण को नहीं कृष्ण-प्रेम को चाहा और पाया

कृष्ण भले ही  मथुरा व द्वारका गए
लेकिन राधा का कृष्ण-प्रेम न मथुरा गया न द्वारका,
 कल भी था, आज भी है, कल भी रहेगा. 

हमें भी कृष्ण प्रेम को पाना है

Monday, 27 February 2012

185. vrindaban dham


छोटा सा धाम : कितना बड़ा
गाँव से कस्वा बड़ा हो सकता है कस्वे से शहर बड़ा हो सकता है 
शहर से दूसरा शहर बड़ा हो सकता है लेकिन बड़े से बड़े शहर से भी बड़ा होता है धाम 
और सवसे बड़ा है - श्री वृन्दावन धाम | 

बड़ा इसलिए की इस स्रष्टि मैं सवसे बड़े स्वयं भगवान् श्री कृष्ण ने यहाँ जन्म लिया 
यहाँ लीलाए की | यह उनका शहर है | उनका धाम है | 

बड़े से बड़े शहर वाला किसी गाँव मैं नहीं जाता है, लेकिन अपने से बड़े , 
सवसे बड़े शहर वाला  धाम मैं आता है 

धाम का क्षेत्रफल कितना ही छोटा हो लेकिन धाम का क्षेत्र बहुत विस्तृत है 
धाम का प्रभाव बहुत विस्तृत है |
एसेश्री वृन्दाबन धाम मैं आप अभी तक नहीं आए हैं 
तो आइये और देखिये की यह छोटा सा धाम कितना बड़ा है ?

Thursday, 23 February 2012

184. pagal haathi m bhagvaan

पागल हाथी में भगवान् 

एक समारोह मेले मैं एक हाथी पागल हो गया | भगदड मच गयी |
महावत चिल्लाने लगा - भागो भागो भीड़ सब इधर उधर भागने लगी |

एक व्यक्ति जहाँ था वहीँ खड़ा रहा 
हाथी ने उसे कुचल दिया | वह मर गया |

मर गया तो यमराज ने पूछा की तुम वहां से भागे क्यों नहीं |
बोला मैंने यह सुना समझा हैं की कण कण मैं भगवान् होता है इस हाथी मैं भी भगवान् हैं 
और भगवान् सबकी रक्षा करते हैं मैं इसलिए नहीं हटा | और उल्टा ही हुआ |

यमराज ने कहा - जब कण कण मैं भगवान् है |
तो जो महावत भागो भागो कह रहा था 
भीड़ वाले भाग रहे थे तो तुम्हें महावत  और भीड़ मैं भगवान् क्यों न दीखा ?
तुम्हे महावत और भीड़ रूपी  भगवान् की बात क्यूँ न सुनाई दी | भगवान् तो महावत के रूप मैं तुम्हारी रक्षा के लिए चिल्लाते रहे | 

तुम ही अपनी मुर्खतावश वहीं अड़े रहे | और कण कण की वजाय केवल  पागल हाथी मैं 
भगवान् को खोजते रहे |
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

पागल हाथी में भगवान्

Tuesday, 21 February 2012

183. paise paise ka antar



पैसे - पैसे का अंतर
पांच का सिक्का, दस का, अठन्नी, चवन्नी, दो, पांच, दस रूपये का सिक्का सभी पैसा है |

साथ ही पांच, दस, बीस, सो, पांच सो, हजार का नोट भी पैसा है
और कुछ लाख या करोड़ का चेक भी पैसा है 

जिस प्रकार पांच पैसे का सिक्का पैसा होते 
हुए भी पैसे की बखत मैं नहीं आता लेकिन उसे पैसा होने से नाकारा भी नहीं जा सकता 

वैसे ही कण कण मैं रहने वाले भगवान की भी स्थिति है अत : अनेक कणों मैं 
अनेक रूपों मैं रहने वाले भगवान् के पूजने वाले रूप को पूजिए | पालने वाले रूप को पालिए | 
और टालने वाले रूप को टालिए |
भगवान् सब मैं है | पैसा सब मैं हैं , लेकिन पांच पैसे के सिक्के से पेट्रोल या माकन नहीं खरीदा जा सकता |

पांच  पैसे के सिक्के को न तो कोई पैसा होने से मना करेगा | और न पेट्रोल देगा |  


JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

पैसे - पैसे का अंतर

Friday, 3 February 2012

182. laukik sukh



लोकिक सुख 

१ रोग रहित होना 
२ ऋण रहित होना 
३ प्रवास मैं न रहना 
४ सज्जनों के साथ परिचय और प्रेम 
५ मन एवं योग्यता अनुरूप व्यापार या नोकरी मिल जाना 
६ मन मैं कोई भय न होना 

विदुर नीति मैं मनुष्य लोक के ६ लोकिक सुख बताये है | 
लेकिन विचार करने पर प्राय हम सभी इन सुखों से वंचित ही हैं |

नानक दुखिया सब संसारा
सोई सुखिया जे नाम उचारा |

अत: श्री हरिनाम का आश्रय लेने से लोकिक 
सुख तो मिलेगा ही, दुर्लभ परम सुख भी सहज प्राप्त होगा 

 लोकिक सुख

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JAI SHRI RADHE

DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia