✔ *लौकिक प्रियता के कारण* ✔
▶ वैसे तो प्रिय लगने के अनेक कारण है
जो हमारी हां में हां मिलाये
जो हमारी प्रशंसा करे । वह सहज ही हमें प्रिय लगता है
▶ भगवान कृष्ण को भी उनकी प्रशंसा करने वाले
उनके गुण लीला का गान करने वाले
उनकी स्तुति करने वाले
उनकी पूजा करने वाले
उनकी भक्ति करने वाले
▶ इतने प्रिय है, इतने प्रिय है, कि भगवान उनको प्रिय तो क्या, उनके वशीभूत हो जाते हैं
▶ दूसरे हैं हमारे रिश्तेदार जैसे पति, पत्नी, बेटे-बेटिया, मामा, चाचा, साले, जीजा आदि-आदि ।
▶ लेकिन यह जो रिश्तेदार हैं कोई कोई तो वास्तव में प्रिय लगते हैं कोई-कोई केवल रिश्ते के कारण प्रिय लगाने पड़ते हैं, प्रिय लगते नहीं निभाने पड़ते हैं
▶ और कुछ होते हैं जो अकारण ही प्रिय लगते हैं उनके प्रिय लगने का कोई विशेष कारण नहीं होता है । या तो स्वभाव मिलता है या प्रभाव मिलता है या ऐसे ही पता नहीं क्यों अच्छे लगते हैं । कुछ मित्र भी प्रिय लगते हैं । भक्तों के मित्र भक्त ही होते हैं
▶ कुल मिलाकर जो प्रिय के लिए प्रिय लगते हैं उन्हीं से ही निभाना श्रेयस्कर है । क्योंकि प्रियता का आधार प्रियता ही होगा तभी ठीक होगा ।
▶ प्रियता का आधार रिश्ता होगा,
प्रियता का आधार चाटुकारिता होगी,
प्रियता का आधार धन के प्रति आकर्षण होगा,
प्रियता का आधार चटर-पटर होगा
प्रियता का आधार प्रशंसा होगा
▶ तो यह कारण समाप्त होने पर इनका कार्य प्रियता समाप्त हो जाएगा और यदि प्रियता का आधार प्रियता होगा । कारण भी प्रियता कार्य भी प्रियता वह कभी समाप्त नहीं होगा ।
▶ प्राय देखा भी गया है कि जहां प्रियता का अभाव होता है वहां रिश्ता टूट जाता है।
▶ लेकिन जिस प्रियता मेंं रिश्ते का भले ही अभाव हो वहाँ प्रियता कभी नहीं टूटती ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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