Friday 23 June 2017

Anadi Tatv



 ✔  *आइये, आज अनादि को समझें हम*    ✔

▶ अभी कुछ दिन पहले भी एक जिज्ञासा आई थी के कृष्ण कैसे मूल तत्व है । कृष्ण तो अभी 5500 वर्ष पूर्व आए हैं ।

▶ कृष्ण से पहले राम हुए हैं नरसिंह हुए हैं वह वामन हुए हैं तो, कृष्ण मूल तत्व कैसे हैं  । मूल तत्व तो कोई और हैं या मूल तत्त्व ब्रह्म है ।

▶ तो इसका समाधान हुआ था कि कृष्ण मूल तत्व है कृष्ण मूल अवतारी हैं कृष्ण के ही सारे अवतार समय-समय पर हुए चाहे वह राम हो चाहे नरसिंह हो चाहे वामन हो चाहे जो भी हो उनके गुणावतार भी हैं ब्रह्मा विष्णु महेश ।

▶ उनके स्वांश हैं बलराम । बलराम के अंश  सनकर्षण । संकर्षण के अंश है नारायण । नारायण, प्रथम पुरुष, द्वितीय पुरुष, तृतीय पुरुष
और इस बार स्वयं श्री कृष्ण पृथ्वी पर आये



▶ जेसे किसी काम के लिए हम अपने बन्दों को भेजते रहते हैं लेकिन किसी ख़ास काम क लिए हम खुद जाते हैं

▶ उसी प्रकार कृष्ण भेजते रहे । इस बार खुद आये । अस्तु । ये लंबी चर्चा है । बेसिकली हम को यह समझना है कि यह कृष्ण की लीलाएं नित्य हैं। यह आज हमें यहां नही दिख रही हैं तो किसी ब्रह्मांड में हो रही हैं ।

▶ क्योंकि ब्रह्मांड भी अनंत है उन अनंत ब्रम्हांड में से किसी एक ब्रह्मांड में हम हैं । इस समय कृष्ण की लीला यहां प्रकट नहीं है किसी ब्रह्मांड में इस समय कंस वध हो रहा होगा । किसी ब्रह्मांड में इस समय गीता अर्जुन को सुनाई जा रही होगी । किसी ब्रह्मांड में नरसिंह अवतार हो रहा होगा ।

▶ जिस प्रकार सूर्य नित्य है,  हमें वह प्रातः से संध्या तक दिखता है  । जब हमें नहीं दिखता तो किसी और देश में दिखता है । उसी प्रकार श्री कृष्ण की लीला, कृष्ण की सृष्टि, कृष्ण का सबकुछ नित्य है  । रोज होता ही रहता है

▶ किसी लोक में प्रलय होती है किसी में सृष्टि का प्रारंभ होता है और ऐसे ही यह जो गीता श्रीमद् भागवत पुराण वेद आदि ग्रंथ हैं यह भी अनादि हैं ऐसा नहीं कि अभी 55 सौ साल पहले ही कृष्ण ने पहली बार गीता अर्जुन को सुनाई

▶ यह तो अभी सुनाई है इससे पहले भी जाने कितनी बार सुना चुके हैं और आगे कितनी बार सुनाएंगे और कितनी बार सुना रहे हैं । आज भी कहीं गीता सुना रहे हैं अर्जुन को

▶ तो कृष्ण की लीला ही नहीं यह सृष्टि भी नित्य है यह सृष्टि भी अनंत ब्रम्हांड में कहीं न कहीं कहीं न कहीं एक चक्र की तरह चलती रहती है और वर्तमान रहती है

▶ अतः भगवद विषय में और जो यह अनादि ग्रंथ हैं अनादि अवतार हैं अनादि जो चीजें हैं यह सदा से हैं सदा रहेगी सदा रहती हैं इनमें आगे पीछे का लफड़ा कोई नहीं है

▶ आगे पीछे का तो क्योंकि हम पंच भौतिक जगत में रहते हैं तो हमें रहता हे कल हमारे पिताजी थे आज नहीं है कल हम भी मर जाएंगे कल हमारा पुत्र होगा फिर वह भी मरेगा

▶ कल हमारे पास फलानी गाड़ी थी । आज नहीं है यह सिस्टम  भगवद विषय में नहीं है । हमें लगता है । आज यदि में अपनी भी बात करूँ तो ऐसा नहीं है कि मैं आज हूं कल नहीं रहूंगा ।

▶ मेरा शरीर नहीं रहेगा जो कि पन्च भौतिक है मेरी जीवात्मा कल भी थी आज भी है कल भी रहेगी । वह जीवात्मा सदा ही रहेगी । कभी वह मनुष्य शरीर में रहेगी । कभी वह गधे में रहेगी । कभी वह भजन के प्रभाव सेे श्री कृष्ण चरणारविंद में रहेगी

▶ जब श्री कृष्ण चरणारविंद में जाकर रहेगी तब फिर किसी और जगह उसे जाना नहीं पड़ेगा लेकिन वह रहेगी सदा सर्वदा जीव आत्मा का कभी नाश नहीं होता

▶ ईश्वर
जीवात्मा
काल यानी समय
कर्म
माया
साथ ही वेद । पुराण । अपौरुषेय ग्रन्थ भी
ग्रंथों को भी शब्द ब्रह्म कहा ह । ग्रन्थ प्रभु के विग्रह हैं

▶ यह पांच अनादि हैं । यह कब शुरु होंगे कब खत्म होंगे । न कभी शुरू हुए ना यह कभी खत्म होंगे

▶ भगवद विषय में इस सिद्धांत को श्रद्धापूर्वक पककी तरह समझ के रखना चाहिए

🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई  ॥ 🐚

 🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn

No comments:

Post a Comment