४९ मरुद्गन
दिति दैत्यों की माता थी, इसके दोनों पुत्र हिरण्याक्ष एवं हिरान्यकशिपू को
जब भगवान् ने मार दिया , तथा देवताओं के अधिपति इन्द्र ने समस्त दैत्यों को मार दिया तब,
पुत्र-रहित होने पर दिति ने कश्यप से एक ऐसा पुत्र माँगा था जो अपने भाइयो को मारने वाले इन्द्र को मार सके
कश्यप जी ने न चाहते हुए भी कठिन व्रत रखने पर पुत्र होने का वर दिया .
इधर इन्द्र को पता चला तो ब्रह्मण वेश वे मौसी की निरंतर सेवा करते रहे
और मौका देखकर घुस गए उसके गर्भ में
उस पुत्र को नष्ट करने के लिया. इन्द्र ने उसके सात टुकड़े कर दिए .
फिर भी वेह जीवित रहे . सात के फिर सात-सात टुकड़े कर दिए ४९ हो गए
यह इन्द्र के काटने पर रोते थे . इन्द्र इन्हें कहते थे - मा रुद्द, मत रोयो तो इनका
नाम मरुदगन पड़ा और ४९ मरूदगन सहित इन्द्र भीपुनः
दिति के गर्भ से प्रकट हुए.
दिति ने पूछा-इन्द्र ! तुम मेरे गर्भ से?
तब इन्द्र ने समस्त वृतांत बताया. और इन्द्र ने कहा ये मेरे भाई है
मै इन्हें अपने साथ ले जाकर देवता बनाऊंगा. इन्हें दैत्य नहीं बनने देंगे .
यही ४९ मरुद्गन हुए.
JAI SHRI RADHE