Monday, 30 July 2012

231. 49 MARUDGAN


 मरुद्गन


४९ मरुद्गन 

दिति दैत्यों की माता थी, इसके दोनों पुत्र हिरण्याक्ष एवं हिरान्यकशिपू को 
जब भगवान् ने मार दिया , तथा देवताओं के अधिपति इन्द्र ने समस्त दैत्यों को मार दिया  तब,
पुत्र-रहित होने पर दिति ने कश्यप से एक ऐसा पुत्र माँगा था जो अपने भाइयो को मारने वाले इन्द्र को मार सके

कश्यप जी ने न चाहते हुए भी कठिन व्रत रखने पर पुत्र होने का वर दिया . 
इधर इन्द्र को पता चला तो ब्रह्मण  वेश वे मौसी की निरंतर सेवा करते रहे 
और मौका देखकर घुस गए उसके गर्भ में 
उस पुत्र को नष्ट करने के लिया. इन्द्र ने उसके सात टुकड़े कर दिए .
फिर भी वेह जीवित रहे . सात के फिर सात-सात  टुकड़े कर दिए  ४९ हो गए
यह इन्द्र के काटने पर रोते थे . इन्द्र इन्हें कहते थे - मा रुद्द, मत रोयो तो इनका
नाम मरुदगन पड़ा और ४९ मरूदगन  सहित इन्द्र भीपुनः
दिति के गर्भ से प्रकट हुए. 

दिति ने पूछा-इन्द्र ! तुम मेरे गर्भ से?
तब इन्द्र ने समस्त वृतांत बताया. और इन्द्र ने कहा ये मेरे भाई है 
मै  इन्हें अपने साथ ले जाकर देवता बनाऊंगा. इन्हें दैत्य नहीं बनने देंगे .

यही ४९ मरुद्गन हुए.

JAI SHRI RADHE

Wednesday, 25 July 2012

230. KARYA - SIDDHI

KARYA - SIDDHI

कार्य सिद्धि कैसे हो ?
                १. परिश्रम
                २. भाग्य
                ३. कृपा (दैव)
तीनो उतरोतर बलवान है.अर्थात सबसे पहले परिश्रम तो करना ही है

परिश्रम करने पर भाग्य के अनुसार फल मिलता है
भाग्य का पता फल मिलने के बाद ही चलता है की भाग्य अच्छा था या बुरा 

क्युकी भाग्य का किसी को कुछ पता नहीं,
इसलिए परिश्रम तो करना ही चाहिए, करना ही है,

तीसरी है कृपा
कृपा संत की हो, बुज़ुर्ग की हो, गुरु की हो, किसी की हो,
कृपा से भी कार्य सिद्ध होता है, लेकिन कृपा  उनकी प्रसन्नता से  प्राप्त होती है
उनके आदेश पालन से प्राप्त होती है.

अतः किसी भी कार्य हेतु बस लग जाना ही
प्राथमिक उपाय है
JAI SHRI RADHE

Tuesday, 24 July 2012

229. GURU 4 PRAKAR K


गुरुदेव चार प्रकार के

            १. साक्षी रूप में विराजमान शरीर में
            २. शिक्षा गुरु
            ३. दीक्षा गुरु 
            ४. सदगुरुदेव 
दीक्षा गुरु जब मस्तक पर हाथ रखकर आत्मसात = स्वीकार कर लें तब सद्गुरुदेव 

जय श्री राधे 

Wednesday, 4 July 2012

228. EXPERT = GURU

 एक्सपार्ट = गुरु

र्जिस प्रकार
आप जिससे डांस सीख रहे हो,
वह डांस का जानने वाला या एक्सपर्ट 
होना चाहिए,

सुन्दर हो या न हो,
धनवान हो या न हो

उसी प्रकार भक्ति या भजन सिखाने वाला
गुरु भी भजन में एक्सपर्ट
होना चाहिए

उसके पास आश्रम हो या न हो,
सुन्दर हो या नहो
व्यवहार कुशल हो न हो
भजन कुशल होना चाहिए

क्योंकि
हम भजन सीखने गए हैं
भक्ति सीखने जा रहे हैं

ख़ास बात यह भी है की
ज़रूरी नहीं
ब्रह्मण ही हो
'किवा विप्र, किवा न्यासी, शूद्र केने नय'

अर्थात भले ही शूद्र हो, लेकिन
भजन यदि जानता है तो
भजन का गुरु बना सकते हैं


JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

EXPERT = GURU

227. DUSHTATAA



दुष्टता 

         १. बेसिक स्वाभाव जन्य 
         २. वातावरण जन्य
 
वातावरण बदलने से वातावरण जन्य दुष्टता
समाप्त हो जाती है

लेकिन बेसिक स्वाभाव जन्य दुष्टता 
सहज समाप्त नहीं  होती .
  
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia