🎲 कलिया नाग का स्वभाव 🎲
🎲 कालिया नाग ने
प्रभु की स्तुति की
और कहा -
प्रभु ये मेरा स्वभाव है,
आपने ही बनाया है
और स्वभाव छूटता
नहीं है ।
🎲 भगवान ने कहा कि
ठीक है, कोई और कहे
जो स्वभावानुकूल
आचरण में लगा हो।
तुम अनेक समय
से धाम में हो !
यमुना के जल में हो !
आज मेरे चरणों का
स्पर्श भी तुम्हे
प्राप्त हो गया ।
फिर भी तुम
अपने स्वभाव का रोना
रो रहे हो तो तुम्हे
धाम में रहने का
अधिकार नहीं ।
🎲 एक साधक भी
यदि इतना सब पाकर
अपना स्वभाव नहीं
बदलता अपितु,
उसकी आड़ लेता है
तो उसे भी धामवास का
अधिकार नहीं ।
भागो यहाँ से !
🙏 समस्त वैष्णव वृंन्द को मेरा सादर प्रणाम
🐚 ।। जय श्री राधे ।। 🐚
🐚 ।। जय निताई ।। 🐚
🖋 लेखक
दासाभास डॉ गिरिराज
LBW - Lives Born Works at Vrindabn
समस्त वैष्णववृन्द को दासाभास का प्रणाम
धन्यवाद!!
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