होली - भंग - कल्पना
मेरी एक प्रेयसी मुझसे ख़फ़ा होगयी एवं
झल्ला कर मुझ से बोली
'आखिर तुम किस मिट्टी से बने हो ?'
मेने कहा-
मै ब्रजवासी हूँ, ब्रज में जन्मा हूँ, ब्रज में पाला हूँ
ब्रज में ही बड़ा हुआ हूँ। में ब्रजकी उस मिट्टी से बना हू
जिसे खाकर -
मेरा कन्हैया माखन की चोरी करने लगा
एवं माखन चोर कहाया
जिसे खाकर -
मेरे कृष्ण ने दुष्टों को मारा एवं कंस - निकंदन कहलाये
जिसे खाकर -
गोपाल ने छल पूर्वक अनेक बार गोपियों को छला
एवं छलिया कहलाये
जिसे खाकर -
माधव ने गोपियों के साथ रास रचाया और
लम्पट कहलाये
जिसे खाकर -
मेरे कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया
और सारथी कहलाये
जिसे खाकर -
मेरे गोविन्द ने गिरिराज धारण किया और
गिरिधारी कहलाये
जिसे खाकर -
मेरे द्वारकाधीश ने सोलह हज़ार एक सौ आठ
रानियों के साथ विवाह किया और योगेश्वर कहलाये
अभी में और भी बहुत कुछ कहने को था कि , वह
खिलखिला कर हस गयी एवं मुझे कंठ लगा लिया
बोली - में समझ गयी तुम सब ब्रजवासी ब्रज रज से
बने हो, तभी तो कृष्ण को परम - प्रिय हो !
नोट - यह होली की भंग पीने के बाद की कल्पना है
कृपया इसके प्रेयसी वाले अंशों को कोरी कल्पना ही समझें
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA
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