Saturday, 15 March 2014

338. holi - bhang - kalpana

holi - bhang - kalpana



होली - भंग - कल्पना 



मेरी एक प्रेयसी मुझसे ख़फ़ा  होगयी एवं 
झल्ला कर मुझ से बोली 
'आखिर तुम किस मिट्टी से बने हो ?'

मेने कहा-
मै ब्रजवासी हूँ, ब्रज में जन्मा हूँ, ब्रज में पाला हूँ 
ब्रज में ही बड़ा हुआ हूँ।  में  ब्रजकी उस मिट्टी से  बना हू 

जिसे खाकर - 
मेरा कन्हैया माखन की चोरी करने लगा 
एवं माखन चोर कहाया 

जिसे खाकर - 
मेरे कृष्ण ने दुष्टों को मारा एवं कंस - निकंदन कहलाये 

जिसे खाकर - 
गोपाल ने छल पूर्वक अनेक बार गोपियों को छला 
एवं छलिया कहलाये 

जिसे खाकर - 
माधव ने गोपियों के साथ रास रचाया और 
लम्पट कहलाये 

जिसे खाकर - 
मेरे कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया 
और सारथी कहलाये 

जिसे खाकर - 
मेरे गोविन्द ने गिरिराज धारण किया और 
गिरिधारी कहलाये 

जिसे खाकर - 
मेरे द्वारकाधीश ने सोलह हज़ार एक सौ आठ 
रानियों के साथ विवाह किया और योगेश्वर कहलाये 

अभी में और भी  बहुत कुछ कहने को था कि , वह 
खिलखिला कर हस गयी एवं मुझे कंठ लगा लिया 

बोली - में समझ गयी तुम सब ब्रजवासी ब्रज रज से 
बने हो, तभी तो कृष्ण को परम - प्रिय हो !

नोट - यह होली की भंग पीने के बाद की कल्पना है 
कृपया इसके प्रेयसी वाले अंशों को कोरी कल्पना ही समझें 
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ NANGIA

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