Wednesday, 29 August 2012

238. RAJ - RANI


रज रानी 

एक रानी ही से दूसरी रानी से मिला सकती हैं . 
राधारानी से मिलना है 
तो सहज प्राप्त वृन्दावन  की रज रानी की सेवा उपासना करो.

रज रानी  ही राधारानी से  मिला देंगी . 

JAI SHRI RADHE

Thursday, 16 August 2012

237. EK KO CHUNO

 EK KO CHUNO


एक को चुनो

अपनी छोटी बहिन के साथ उसके कॉलेज जाओ 
उसकी कक्षा में बेठो थोडा लिखो पढो और आ जाओ.

दुसरे दिन बड़ी बहिन के साथ जाओ थोडा लिखो पढो और आजाओ

केवल मनोरंजन है तो ठीक हैं
लेकिन यदि आप सेरिअस है और यह कहे की में भी 
तो कीसी न किसी बहिन के साथ रोज़ कॉलेज  जाती हूँ तो आपका भ्रम है 
न आपको रोज़ जाने दिया जाएगा न परीक्षा में बेठने दिया जाएगा ने डिग्री मिलेगी और न नौकरी.

इसी  प्रकार कभी कृष्ण कभी राम कभी शिव कभी माता करोगे तो हाल वही होगा,, 
मनोरंजन ही  होगा बस...

यदि गंभीर हो तो किसी भी एक के हो जाओ एक को पकड़ लो. 
जिस प्रकार पति एक रिश्ते अनेक 

"पति एक" अन्यथा चरित्रहीन कह्लोगी. 
एक को पकड़ो. एक को भजो. एक में निष्ठां.एक की प्रतिस्था 
चुनाव खुद करो सोच समझकर.
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Wednesday, 15 August 2012

236. 15th august

स्वतंत्रता दिवस
आज १५ अगस्त को भारत स्वतन्त्र हुआ था
पर-तंत्रता, पर-शासन समाप्त हुआ था
 
सर्वतंत्र - स्वतन्त्र,  परम - स्वतन्त्र भगवान्
श्री कृष्ण के चर्नारविन्द को प्राप्त करने की
इच्छा को लेकर लोभ, मोह, द्वेष, क्रोध, आदि मायिक
लौकिक प्रवृत्तियों से न जाने हम कब स्वतन्त्र होंगे ?
 
इनसे स्वतन्त्र होकर भगवद सेवा प्राप्त होने पर ही
हम वास्तविक स्वतन्त्र होंगे !
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Monday, 13 August 2012

235. KHEENCH - TAAN


KHEENCH - TAAN

खींच - तान 

बिल्ली के गले में रस्सी बाँध दो 
और उसके दुसरे छोर को पकड़ लो तो 
बिल्ली निश्चित ही उसे खिचेगी  
फिर हम यह कहते हैं की :  मेने तो केवल पकड़ राखी है, 
खीच तो बिल्ली रही है.

हम यदि संसार की रस्सी पकडे रहगे तो 
खींचतान मची रहेगी 
संसार में  रहो भले  ही  रस्सी को छोड़ दो 
खींचतान समाप्त हो जाएगी
JAI SHRI RADHE
DASABHAS Dr GIRIRAJ nangia

Friday, 10 August 2012

234. JANMASHTAMI

जन्माष्टमी

कन्हैया का जन्म हुया तो 
रोते ही जा रहे थे

साथ खड़े एक जन के पास मेसज आया
उसने मोबाईल में मैसेज पढ़ा

दूर खड़े दूसरे जन ने पूछा-
क्या मैसेज आया

उसने जोर से बोल कर बताया-
जय श्री राधे

क्या ?
जय श्री राधे 

हाँ जय श्री राधे !!!

जानते हैं लाला का रोना बंद हो गया
और लाला जोर-जोर से खिलखिलाने लगे

बोलिए-
जय श्री राधे

दासाभास डा गिरिराज 

Friday, 3 August 2012

233. DHRUV KI BHAKTI


 DHRUV KI BHAKTI

ध्रुव की भक्ति

भगवन की भक्ति करते हुए अपने लिए कुछ मांगना 
शत प्रतिशत भक्ति नहीं  है. सकाम भक्ति है. लेकिन सकाम भक्ति करते करते 
एक अवसर ऐसा आता है की भक्त विशुद्ध भक्ति 
तक पहुच कर भगवान् के श्री चरणों की सेवा के अतिरिक्त 
कुछ नहीं  मांगता . 
न करने से बेहतर है सकाम भक्ति ही सही., भक्ति करो.

ध्रुव को जब उनकी सौतेली माँ ने दुत्कार दिया तो 
ध्रुव न्र भगवान् की उपासना शुरू की. 
कामना यह ही थी की मुझे पिता से भी बड़ा राज्य मिले 
और पिता स्वयं मुझे गोदी में बताने के लिए बुलाये. लेकिन भक्ति भजन 
करते करते जब भगवान प्रकट हुए कहा वर मांगो तो 
ध्रुव ने  कहा की जब आपके श्री चरणों के दर्शन होगये तो अब क्या राज्य और क्या गोदी? 
मुझे तो अपने श्री चरनोको सेवा देदीजिए,

प्रभु ने कहा ध्रुव तुम निश्चित हे मेरी सेवा के अधिकारी हो 
लेकिन तुमने जिस कामना के लिए भक्ति प्रारंभ की थी यह भी पूर्ण करूंगा. 
भगवन ने विशाल राज्य दिया. हजारो वर्ष तक ध्रुव ने राज्य सुख भोगा और अंत में 
मृत्यु के सर पर पैर रखकर भगवद धाम को गए और आज भी तारा मंडल में दर्शनीय है. 

सकाम भक्ति वाला विशुद्ध भक्ति तक पहुचता तो है 
लेकिन उसे देर लगती है बीच का समय या अनेक अनेक जनम कामना पूर्ति में नष्ट हो जाते है.

अतः जल्दी प्रभु चरण प्राप्ति हेतु विशुद्ध भक्ति पर केन्द्रित करना चाहिए. 
कामनायो का अंत नहीं है. इन्हें छोड़ना ही पड़ता है...  
छोड़ना चाहिए भी.
JAI SHRI RADHE

Wednesday, 1 August 2012

232. SACHCHAA PREM



सच्चा प्रेम 

श्री मद भागवत के अजातपक्षाइव श्लोक में एक चिड़िया के बच्चे का 
उदहारण  दिया गया है 
जिसमे बच्चे के पंख नहीं है 
और गिद्द की दृष्टि उस पर पड़ जाती है वह माँ- माँ पुकार रहा है 

इसमें  माँ को याद करने का उद्देश्य अपने जीवन की रक्षा की चाह है .

दूसरा उदहारण  है बछड़े का. उसे घास दो
 नहीं ले रहा कुछ भी खाने को दो नहीं खा रहा. वह तो केवल माँ माँ पुकार रहा है.

लेकिन इसमें भी अपनी भूक मिटने हेतु माँ माँ करना है 

तीसरा उदहारण  है नवविवाहिता नारी का, 
जो है तो पीयर में लेकिन अपने प्रियतम की स्मृति में छीर्ण  हुई जा रही है 
और चाहती है की में अपने पति के पास जाऊ और उनकी यथोचित सेवा करू. 
मेरे बिना वह कष्ट पा रहे होंगे. 
यह भाव स्वामी सेवा के लिए उपयुक्त है इसमें अपने सुख की कामना नहीं है.

एक साधक की, या एक प्रेमी की यही भावना ही सच्चा प्रेम है
अन्यथा स्वार्थ ही है.
JAI SHRI RADHE

SACHCHAA PREM