✔ *साधक साधना साध्य
तीनो चाहिए* ✔
▶ साधक हैं हम जीव और
साध्य हैं भगवान ब्रजेंद्र नंदन के श्री चरणों की सेवा या प्रिया प्रियतम का सुख और
साधन है भक्ति । भक्ति यानी भजन । भजन यानि अनुकूलता पूर्वक श्रीकृष्ण की सेवा ।
▶ कृष्ण की सेवा या कृष्ण हमारे साध्य हैं ।और राधारानी आश्रय तत्व है । मालिक हैं श्रीकृष्ण की ।
▶ जैसे किसी मकान का कोई एक मालिक होता है मकान को प्राप्त करना है तो मालिक से सौदा कर के मालिक को पैसा दे के मालिक से चाबी प्राप्त करनी होती है ।
▶ इसी प्रकार हम राधा रानी को प्रसन्न करते हुए अंततः श्री कृष्ण अथवा श्री राधा कृष्ण की च्रण सेवा या सुख प्राप्त करते हैं यह है साध्य ।
▶ इस सब सुख प्रदान की जितनी भी क्रियाएं हैं वह सब हैं साधन । जिन क्रियाओं से प्रिया प्रियतम को सुख प्राप्त नहीं होता है वह इस साध्य के साधन नहीं है ।
▶ जैसे व्यापार करना पैसे कमाने का साधन है । उस पैसे से यदि प्रिया लाल का सुख संपादित किया जाए तो व्यापार करना भी भक्ति का अंग हो सकता है ।
▶ इसके अतिरिक्त कुछ भी साधन, भक्ति का साधन नहीं है । किसी और साध्य का साधन हो सकता है । और उस साधन को करने वाले भी हम जीव हैं । साधक हैं ।
▶ अतः इस चक्र को यदि पूरा करना है तो साध्य भी चाहिए । साधन भी चाहिए । और साधक भी चाहिए ।
▶ और इनको समझना और उसकी सही दिशा में प्रयत्न करना । इतना जानने के लिए नामजप, नाम संकीर्तन करना आवश्यक है ।
▶ नाम से चित्त रूपी दर्पण साफ होकर पूरा सिस्टम धीरे धीरे समझ में आने लगता है । और आता भी है । बहुतों को समझ में आया भी है ।
▶ समस्त वैष्णव कृपा करें कि आप को और दासाभास को भी यह समझ में आ जाए तो हमारा जीवन सफल हो जाए ।
🐚 ॥ जय श्री राधे ॥ 🐚
🐚 ॥ जय निताई ॥ 🐚
🖊 लेखक
दासाभास डा गिरिराज नांगिया
LBW - Lives Born Works at vrindabn
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